चाणक्य नीति ⚔️
तृतीय अध्याय
♦️श्लोक : १५
एकानाअ्पि सुपुत्रेण विद्यायुक्तेन साधुना।
आह्लादितं कुलं सर्वं यथा चन्द्रेण शर्वरी।।१५।।
♦️भावार्थ – जैसे चन्द्र के उदय होने पर रात का घनघोर अंधेरा खत्म हो जाता है और हर जगह सुखद चांदनी का डेरा हो जाता है, वैस ही कुल में एक ही सुपुत्र होने से पूरे कुल की प्रतिष्ठा बढ़ जाती है और पूरा कुल प्रसन्न हो जाता