IUNNATI CHANAKYA NITI चाणक्य नीति

चाणक्य नीति

चाणक्य नीति  

 द्वितीय अध्याय 

श्लोक :- १५

नदी तीरे च ये वृक्षाः परगृहेषु कामिनी। 

मन्त्रिहीनश्च राजानः शीघ्रं नश्यन्त्नसंशयम्।।१५।। 

भावार्थ — नदी के तट के पेड़, दूसरे के घर में रहने वाली सुंदर महिला तथा मंत्री हीन राजा-ये बहुत जल्दी नष्ट हो जाते हैं, इस बारे में कोई संदेह नहीं है। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Post

चाणक्य नीतिचाणक्य नीति

चाणक्य नीति   द्वितीय अध्याय श्लोक : २ भोज्य भोजनशक्तिश्च रतिशक्तिर्वराङ्गना। विभवो दानशक्तिश्च नाअ्ल्पस्य तपसः फलम्।।२।। भावार्थ — खाने-पीने की चीजों का सुलभ होना, खाने-पीने की क्षमता होना, भोग-विलास की ताकत

चाणक्य नीतिचाणक्य नीति

 चाणक्य नीति  द्वितीय अध्याय  श्लोक : १ अनृतं साहसं माया मूर्खत्वमतिलुब्धता।* अशीचत्वं निर्दयत्वं स्त्रीणां दोषाः स्वभावजाः।।१।। भावार्थ – स्त्रियाँ स्वभाव से असत्य बोलने वाली, बहुत बहादुर, छली, कपटी, धोखेबाज, अत्यंत

CHANKAYA NITICHANKAYA NITI

 चाणक्य नीति    तृतीय अध्याय  श्लोक : १४  एकेनाअ्पि सुवृक्षेण पचष्पितेन सुगन्धिना। वासितं तद्वनं सर्वं सुपुत्रेण कुलं तथा।।१४।। भावार्थ – पुष्पों से लदे और उत्तम सुगन्ध से युक्त एक ही पेड़