CHANAKYA NITICHANAKYA NITI
चाणक्य नीति द्वितीय अध्याय श्लोक:-१० पुत्राश्च विविधैः शीलैर्नियोज्याः सततं बुधैः। नीतिज्ञाः शीलसम्पन्ना भवन्ति कुलपूजिताः।।१०।। भावार्थ — बुद्धिमान इंसान को अपनी संतान को अच्छे कामों की और लगाना चाहिए, क्योंकि श्रद्धालु
चाणक्य नीति द्वितीय अध्याय श्लोक:-१० पुत्राश्च विविधैः शीलैर्नियोज्याः सततं बुधैः। नीतिज्ञाः शीलसम्पन्ना भवन्ति कुलपूजिताः।।१०।। भावार्थ — बुद्धिमान इंसान को अपनी संतान को अच्छे कामों की और लगाना चाहिए, क्योंकि श्रद्धालु
चाणक्य नीति द्वितीय अध्याय श्लोक :- ९ शैले-शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे-गजे। साधवे न हि सर्वत्र चन्दनं न वने-वने।।९।। भावार्थ — हर पहाड़ पर माणिक नहीं मिलते। प्रत्येक हाथी
चाणक्य नीति द्वितिय अध्याय श्लोक:-३ यस्य पचत्रो वशीभूतो भार्या छन्दाअ्नुगामिनी। विभवे यश्च सन्तुष्टस्तस्य स्वर्ग इहैव हि।।३।। भावार्थ — जिसका बेटा आज्ञाकारी हो तथा पत्नी पति के अनुकूल आचरण करने वाली
चाणक्य नीति द्वितीय अध्याय श्लोक : २ भोज्य भोजनशक्तिश्च रतिशक्तिर्वराङ्गना। विभवो दानशक्तिश्च नाअ्ल्पस्य तपसः फलम्।।२।। भावार्थ — खाने-पीने की चीजों का सुलभ होना, खाने-पीने की क्षमता होना, भोग-विलास की ताकत
चाणक्य नीति द्वितीय अध्याय श्लोक : १ अनृतं साहसं माया मूर्खत्वमतिलुब्धता।* अशीचत्वं निर्दयत्वं स्त्रीणां दोषाः स्वभावजाः।।१।। भावार्थ – स्त्रियाँ स्वभाव से असत्य बोलने वाली, बहुत बहादुर, छली, कपटी, धोखेबाज, अत्यंत
चाणक्य नीति तृतीय अध्याय श्लोक : २० धर्मार्थकाममोक्षाणां यस्यैकोअ्पि न विद्यते। जन्म-जन्मनि मर्त्येषु मरणं तस्य केवलम्।।२०।। भावार्थ – मनुष्य देह धारण करने पर भी जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष
चाणक्य नीति तृतीय अध्याय श्लोक : २१ मूर्ख यत्र न पूज्यन्ते धान्यं यत्र सुसञ्चितम्। दम्पत्येः कलहो नाअ्स्ति तत्र श्रीः स्वयमागता ।।२१।। भावार्थ – जिस जगह मूर्ख पूजित नहीं होते और
चाणक्य नीति तृतीय अध्याय श्लोक : २० धर्मार्थकाममोक्षाणां यस्यैकोअ्पि न विद्यते। जन्म-जन्मनि मर्त्येषु मरणं तस्य केवलम्।।२०।। भावार्थ – मनुष्य देह धारण करने पर भी जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष
चाणक्य नीति तृतीय अध्याय श्लोक : १९ उपसर्गेअ्न्यचक्रे च दुर्भिक्षे च भयावहे। असाधुजनसम्पर्के यः पलायति सः जीवति ।।१९।। भावार्थ – आग लगने, बाढ़ आने, सूखा पड़ने, उल्कापात, अकाल, आतताइयों द्वारा
चाणक्य नीति तृतीय अध्याय श्लोक : १८ लालयेत् पञ्च वर्षाणि दश वर्षाणि ताडयेत्। प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत्।।१८।। भावार्थ – पाँच साल तक लाड़-प्यार, दस साल तक सख़्ती और