तृतीय अध्याय
श्लोक :- ७
मूर्खस्तु परिहर्तव्यः प्रत्यक्षो द्विपदः पशुः।
भिनत्ति वाक्शल्येन अदृष्टः कण्टको यथा।।७।।
भावार्थ — मूर्ख का हमेशा त्याग कर देना चाहिए, क्यों कि वह दो पैरों वाले जानवर जैसा होता है। अपनी बेध देने वाली बातों से उसी प्रकार दिल को दुःख पहुंचाता रहता है जैसे दिखाई ना देने वाला कांटा पैर में चुभकर दर्द देता रहता है।
GOOD