IUNNATI CHANAKYA NITI  चाणक्य नीति 

 चाणक्य नीति 

✒️ तृतीय अध्याय

श्लोक :- ६

प्रलये भिन्नमर्यादा भवन्ति किल सागराः। 

सागरा भेदमिच्छन्ति प्रलयेअ्पि न साधवः।।६।। 

भावार्थ — प्रलय काल में सागर भी अपनी मर्यादा को छोड़ देता है। वह तटों को भी पार कर जाता है। किंतु भले लोग प्रलय आने पर भी अपनी मर्यादा नहीं छोड़ते 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Post

चाणक्य नीतिचाणक्य नीति

चाणक्य नीति   द्वितीय अध्याय श्लोक:-१८ गृहीत्वा दक्षिणां विप्रास्त्यजन्ति यजमानकम्। प्राप्तविद्या गुरुं शिष्या दग्धाअ्रण्यं मृगास्तथा।।१८।। भावार्थ– पुरोहित दक्षिणा लेकर यजमान को छोड़ देते हैं, शिष्य विद्या प्राप्ति के बाद गुरु-दक्षिणा देकर

चाणक्य नीतिचाणक्य नीति

चाणक्य नीति    द्वितीय अध्याय  श्लोक :- १५ नदी तीरे च ये वृक्षाः परगृहेषु कामिनी।  मन्त्रिहीनश्च राजानः शीघ्रं नश्यन्त्नसंशयम्।।१५।।  भावार्थ — नदी के तट के पेड़, दूसरे के घर में रहने

चाणक्य नीतिचाणक्य नीति

 चाणक्य नीति  द्वितीय अध्याय  श्लोक : १ अनृतं साहसं माया मूर्खत्वमतिलुब्धता।* अशीचत्वं निर्दयत्वं स्त्रीणां दोषाः स्वभावजाः।।१।। भावार्थ – स्त्रियाँ स्वभाव से असत्य बोलने वाली, बहुत बहादुर, छली, कपटी, धोखेबाज, अत्यंत