तृतीय अध्याय
श्लोक:-४
दुर्जनस्य च सर्पस्य वरं सर्पो न दुर्जनः।
सर्पो दंशति कालेन दुर्जनस्तु पदे पदे।।४।।
भावार्थ– दुष्ट और सांँप की तुलना की जाए तो दोनों में सांँप बेहतर है। क्योंकि साँप तो समय आने पर ही काटता है, लेकिन दुष्ट इंसान तो कदम-कदम पर काटता है, हानि पहुंचाता है, बुराई करता है।