IUNNATI CHANAKYA NITI चाणक्य नीति

चाणक्य नीति

तृतीय अध्याय

श्लोक:-४

दुर्जनस्य च सर्पस्य वरं सर्पो न दुर्जनः।

सर्पो दंशति कालेन दुर्जनस्तु पदे पदे।।४।।

भावार्थ– दुष्ट और सांँप की तुलना की जाए तो दोनों में सांँप बेहतर है। क्योंकि साँप तो समय आने पर ही काटता है, लेकिन दुष्ट इंसान तो कदम-कदम पर काटता है, हानि पहुंचाता है, बुराई करता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Post

 चाणक्य नीति  चाणक्य नीति 

 तृतीय अध्याय  श्लोक :- ५ एतदर्थ कुलीनानां नृपाः कुर्वन्ति संग्रहम्। आदिमध्याअ्वसानेषु न त्यजन्ति च ते नृपम्।।५।।  भावार्थ — राजा कुलीन लोगों को साथ इसलिए रखते हैं क्योंकि सु-संस्कारों की वजह

महाराजा विक्रमादित्य के नवरत्नमहाराजा विक्रमादित्य के नवरत्न

महाराजा विक्रमादित्य के नवरत्नों की कोई चर्चा पाठ्यपुस्तकों में नहीं है ! जबकि सत्य यह है कि अकबर को महान सिद्ध करने के लिए महाराजा विक्रमादित्य की नकल करके कुछ

CHANAKYA NITI LESSON FOR LIFECHANAKYA NITI LESSON FOR LIFE

चाणक्य नीति   तृतीय अध्याय  श्लोक : २०  धर्मार्थकाममोक्षाणां यस्यैकोअ्पि न विद्यते।  जन्म-जन्मनि मर्त्येषु मरणं तस्य केवलम्।।२०।।  भावार्थ – मनुष्य देह धारण करने पर भी जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष