IUNNATI CHANAKYA NITI  चाणक्य नीति 

 चाणक्य नीति 

✒️ तृतीय अध्याय

श्लोक :- ६

प्रलये भिन्नमर्यादा भवन्ति किल सागराः। 

सागरा भेदमिच्छन्ति प्रलयेअ्पि न साधवः।।६।। 

भावार्थ — प्रलय काल में सागर भी अपनी मर्यादा को छोड़ देता है। वह तटों को भी पार कर जाता है। किंतु भले लोग प्रलय आने पर भी अपनी मर्यादा नहीं छोड़ते 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Post

CHANAKYA NITI SANSKRIT SHLOKCHANAKYA NITI SANSKRIT SHLOK

चाणक्य नीति   तृतीय अध्याय श्लोक:-१२ अतिरूपेण वै सीता अतिगर्वेण रावणः। अतिदानात् वालिबद्धो अति सर्वत्र वर्जयेत्।।१२।। भावार्थ – अधिक सुन्दरता ही माँ सीता के अपहरण का कारण हुआ, अधिक गर्व से

CHANKAYA NITICHANKAYA NITI

 चाणक्य नीति    तृतीय अध्याय  श्लोक : १४  एकेनाअ्पि सुवृक्षेण पचष्पितेन सुगन्धिना। वासितं तद्वनं सर्वं सुपुत्रेण कुलं तथा।।१४।। भावार्थ – पुष्पों से लदे और उत्तम सुगन्ध से युक्त एक ही पेड़

CHANAKYA NITI IN HINDICHANAKYA NITI IN HINDI

 चाणक्य नीति   तृतीय अध्याय श्लोक : ८  रुपयौवनसम्पन्नाः विशालकुलसम्भवाः। विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्ध इव किंशुकाः।।८।। भावार्थ— सुंदरता और युवा अवस्था से संपन्न और बड़े कुल में पैदा होने पर भी