IUNNATI CHANAKYA NITI चाणक्य नीति

चाणक्य नीति

चाणक्य नीति ⚔️

✒️ द्वितिय अध्याय 

♦️श्लोक:-३

यस्य पचत्रो वशीभूतो भार्या छन्दाअ्नुगामिनी।

विभवे यश्च सन्तुष्टस्तस्य स्वर्ग इहैव हि।।३।।

♦️भावार्थ — जिसका बेटा आज्ञाकारी हो तथा पत्नी पति के अनुकूल आचरण करने वाली हो, पतिव्रता हो एवं जो प्राप्त धन से ही संतुष्ट हो, ऐसे व्यक्ति के लिए स्वर्ग यही है, यह जानना चाहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Post

CHANAKYA NITICHANAKYA NITI

 चाणक्य नीति   तृतीय अध्याय श्लोक : १० त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थ कुल त्यजेत्। ग्रामं जनपदस्याअ्र्थे आत्माअ्र्थे पृथिवीं त्यजेत्।।१०।। भावार्थ – कुल के लिए अगर व्यक्ति को छोड़ना पड़े तो ख़ुशी-ख़ुशी छोड़

चाणक्य नीतिचाणक्य नीति

चाणक्य नीति   द्वितीय अध्याय श्लोक:-१८ गृहीत्वा दक्षिणां विप्रास्त्यजन्ति यजमानकम्। प्राप्तविद्या गुरुं शिष्या दग्धाअ्रण्यं मृगास्तथा।।१८।। भावार्थ– पुरोहित दक्षिणा लेकर यजमान को छोड़ देते हैं, शिष्य विद्या प्राप्ति के बाद गुरु-दक्षिणा देकर

चाणक्य नीतिचाणक्य नीति

तृतीय अध्याय श्लोक:-४ दुर्जनस्य च सर्पस्य वरं सर्पो न दुर्जनः। सर्पो दंशति कालेन दुर्जनस्तु पदे पदे।।४।। भावार्थ– दुष्ट और सांँप की तुलना की जाए तो दोनों में सांँप बेहतर है।