चाणक्य नीति  
 
 द्वितीय अध्याय
 द्वितीय अध्याय 
 श्लोक :- ९
श्लोक :- ९
शैले-शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे-गजे।
साधवे न हि सर्वत्र चन्दनं न वने-वने।।९।।
 भावार्थ — हर पहाड़ पर माणिक नहीं मिलते। प्रत्येक हाथी के सर पर मोती नहीं होते। सज्जन लोग सब जगह नहीं होते और सभी वनों में चंदन नहीं होता।।
भावार्थ — हर पहाड़ पर माणिक नहीं मिलते। प्रत्येक हाथी के सर पर मोती नहीं होते। सज्जन लोग सब जगह नहीं होते और सभी वनों में चंदन नहीं होता।।
