चाणक्य नीति
द्वितीय अध्याय
श्लोक : २
भोज्य भोजनशक्तिश्च रतिशक्तिर्वराङ्गना।
विभवो दानशक्तिश्च नाअ्ल्पस्य तपसः फलम्।।२।।
भावार्थ — खाने-पीने की चीजों का सुलभ होना, खाने-पीने की क्षमता होना, भोग-विलास की ताकत होना, आत्मतृप्ति के लिए सुंदर स्त्री का मिलना, धन-संपत्ति का होना और उसके उपभोग के साथ ही दान की प्रवृत्ति होना। ये बातें पूर्व-जन्म के संयोग की वजह से ही होती है या मनुष्य के तप से ही ऐसा फल मिलता है।