चाणक्य नीति दैनिक अध्याय
।। अथ: चाणक्य सूत्रं प्रारभ्यते ।।
【चाणक्य सूत्र】
चाणक्य सूत्र : २१७ ॥ न दुर्जनैः सह संसर्गः कर्त्तव्यः ।।
भावार्थ:- बुद्धिमान व्यक्तियों को दुष्ट लोगों से दूर रहना चाहिए। दुष्ट लोगों के संसर्ग से बचने से ही बुद्धिमान लोगों को लाभ होता है।
संक्षिप्त वर्णन :-मनुष्य जिस प्रकार के समाज में रहता है उसका प्रभाव उसके जीवन पर अवश्य पड़ता है। इसीलिए व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने आपको दुष्ट व्यक्ति के संसर्ग से बचाता रहे। दुष्ट व्यक्तियों के संसर्ग से मनुष्यों में अनेक दोष उत्पन्न हो जाते हैं।।217।
चाणक्य सूत्र : २१८ ॥ शौण्डहस्तगतं पयोऽप्यवमन्येत् ।।
भावार्थ:-
शराब बेचनेवाले के हाथ में यदि दूध भी होगा तो उसे भी शराब ही समझा जाएगा।
संक्षिप्त वर्णन :-इसका भाव यह है कि यदि दुष्ट व्यक्ति में कोई गुण भी होता है तो भी लोग उस पर विश्वास नहीं करते। वे उस गुण के प्रति भी आशंकित रहते हैं। जिस प्रकार शराब बेचने वाले व्यक्ति की दुकान पर शराब के पात्र में यदि दूध भर दिया जाये तो भी लोग उसे शराब ही मानेंगे। इसी तरह दुष्टों के गुणों पर भी संदेह किया जाता है।