IUNNATI SHIV PURAN शिव पुराण बत्तीसवां अध्याय – वशिष्ठ मुनि का उपदेश 

शिव पुराण बत्तीसवां अध्याय – वशिष्ठ मुनि का उपदेश 

शिव पुराण 

बत्तीसवां अध्याय – श्री रुद्र संहिता (तृतीय खण्ड)

 विषय:–वशिष्ठ मुनि का उपदेश

 ब्रह्माजी बोले- हे नारद! हिमालय के कहे वचनों को सुनकर महर्षि वशिष्ठ बोले- हे शैलराज ! भगवान शंकर इस संपूर्ण जगत के पिता हैं और देवी पार्वती इस जगत की जननी हैं। शास्त्रों की जानकारी रखने वाला उत्तम मनुष्य वेदों में बताए गए तीन प्रकार के वचनों को जानता है। पहला वचन सुनते ही बड़ा प्रिय लगता है परंतु वास्तविकता में वह असत्य व अहितकारी होता है। इस प्रकार का कथन हमारा शत्रु ही कह सकता है। दूसरा वचन सुनने में अच्छा नहीं लगता परंतु उसका परिणाम सुखकारी होता है। तीसरा वचन सुनने में अमृत के समान लगता है तथा वह परिणामतः हित करने वाला होता है। इस प्रकार नीति शास्त्र में किसी बात को कहने के तीन प्रकार बताए गए हैं। आप इन तीनों प्रकार में किस तरह का वचन सुनना चाहते हैं? मैं आपकी इच्छानुसार ही बात करूंगा। भगवान शंकर सभी देवताओं के स्वामी हैं, उनके पास दिखावटी संपत्ति नहीं है। वे महान योगी हैं और सदैव ज्ञान के महासागर में डूबे रहते हैं। वे ही सबके ईश्वर हैं। गृहस्थ पुरुष राज्य और संपत्ति के स्वामी मनुष्य को ही अपनी पुत्री का वर चुनता है। ऐसा न करके यदि वह किसी दीन-हीन को अपनी कन्या ब्याह दे तो उसे कन्या के वध का पाप लगता है। शैलराज! आप शिव स्वरूप को जानते ही नहीं हैं। धनपति कुबेर आपका सेवक है। कुबेर को यहां धन की कौन-सी कमी है? जो स्वयं सारे संसार की उत्पत्ति, पालन और संहार करते हैं, उन्हें भोजन की भला क्या कमी हो सकती है? ब्रह्मा, विष्णु और रुद्रदेव सभी भगवान शिव का ही रूप हैं। शिवजी से प्रकट हुई प्रकृति अपने अंश से तीन प्रकार की मूर्तियों को धारण करती है। उन्होंने मुख से सरस्वती, वक्ष स्थल से लक्ष्मी एवं अपने तेज से पार्वती को प्रकट किया है। भला उन्हें दुख कैसे हो सकता है?

तुम्हारी कन्या तो कल्प-कल्प में उनकी पत्नी होती रही है एवं होती रहेगी। अपनी कन्या सदाशिव को अर्पण कर दो। तुम्हारी कन्या के तपस्या करते समय देवताओं की प्रार्थना पर सदाशिव तुम्हारी कन्या के समीप पहुंचकर, उन्हें उनका मनोवांछित वर प्रदान कर चुके हैं। तुम्हारी पुत्री पार्वती के कहे अनुसार शिवजी तुमसे तुम्हारी कन्या का हाथ मांगने के लिए तुम्हारे घर दो बार पधारे थे पर तुम उन्हें नहीं पहचान सके। वे नटराज और ब्राह्मण वेशधारी शिव ही थे जो तुम्हारी कन्या का हाथ मांगने आए थे पर तुमने मना कर दिया। यह तुम्हारा दुर्भाग्य नहीं है तो क्या है? अब यदि तुमने प्रेम से शिवजी को अपनी कन्या का दान न किया तो भगवान शंकर बलपूर्वक ही तुम्हारी कन्या से विवाह कर लेंगे। शैलेंद्र ! यह बात अगर आप ठीक से नहीं समझेंगे तो आपका अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। आपको शायद ज्ञात नहीं है कि पूर्व में देवी शिवा ने ही प्रजापति दक्ष की पत्नी के गर्भ से जन्म लिया था और सती के नाम से प्रसिद्ध हुई थीं। उन्होंने कठोर तपस्या करके भक्तवत्सल भगवान शिव को वरदान स्वरूप पति के रूप में प्राप्त किया था परंतु अपने पिता दक्ष द्वारा आयोजित महान यज्ञ में अपने पति त्रिलोकीनाथ भगवान शिव की अवहेलना एवं निंदा होते देखकर उन्होंने स्वेच्छा से अपने शरीर को त्याग दिया था। वही साक्षात जगदंबा इस समय आपकी पत्नी मैना के गर्भ से प्रकट हुई हैं और कल्याणमयी भगवान शिव को जन्म-जन्मांतर की भांति पति रूप में पाना चाहती हैं। अतः गिरिराज हिमालय, आप स्वयं अपनी इच्छा से अपनी पुत्री का हाथ महादेव जी के हाथों में सौंप दीजिए। इन दोनों का साथ इस जगत के लिए मंगलकारी है। शैलराज! यदि आप स्वेच्छा से शिवजी व देवी पार्वती का विवाह नहीं करेंगे तो पार्वती स्वयं अपने आराध्य भगवान शिव के धाम कैलाश पर्वत चली जाएंगी। आपकी प्रिय पुत्री पार्वती की इच्छा का सम्मान करते हुए ही भगवान शिव स्वयं आपसे पार्वती का हाथ मांगने के लिए वेश बदलकर आपके घर आए थे परंतु आपने उनको नहीं पहचाना और अपनी कन्या देने से इनकार कर दिया। आपके शिखर पर तपस्या के लिए पधारे भगवान शिव की देवी पार्वती ने जब सेवा की थी तो आप भी उनके इस निर्णय में उनके साथ थे। आपकी आज्ञा प्राप्त करके ही देवी पार्वती भगवान शिव को पति रूप में पाने की इच्छा लेकर तपस्या करने हेतु वन में गई थीं। उनके इस प्रण और कार्य को आपने सराहा था। फिर आज ऐसा क्या हो गया कि आप अपने ही वचनों से पीछे हट रहे हैं।

भगवान शिव ने देवताओं की प्रार्थना स्वीकार करके हम सप्तऋषियों को और देवी अरुंधती को आपके पास भेजा है। इसलिए हम आपको यह समझाने आए हैं कि आप पार्वती जी का हाथ भगवान शिव के हाथों में दे दें दें। ऐसा करके आपको बहुत आनंद मिलेगा। भगवान शिव ने तपस्या के पश्चात प्रसन्न होकर देवी पार्वती को यह वरदान दिया है कि वे उनकी पत्नी हों। भगवान शिव परमेश्वर हैं। उनकी वाणी कदापि असत्य नहीं हो सकती। उनका वरदान अवश्य सत्य सिद्ध होगा। इसलिए हम सप्तऋषि आपसे यह अनुरोध कर रहे हैं कि आप इस विवाह हेतु प्रसन्नतापूर्वक अपनी स्वीकृति प्रदान करें। ऐसा करके आप अपने परिवार का ही नहीं समस्त मानवों और देवताओं का कल्याण करेंगे।

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