शिव पुराण
सातवां अध्याय - श्री रुद्र संहिता (पंचम खण्ड) ( शिवजी )
विषय - देवताओं द्वारा शिव-स्तवन
सनत्कुमार जी बोले- हे व्यास जी! जैसे ही शरणागत भक्तवत्सल भगवान शिवजी ने देवताओं की प्रार्थना स्वीकार कर तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली का वध करने का मन बनाया,
उसी समय देवी पार्वती अपने पुत्र को गोद में लेकर वहां आईं।
तब जगज्जननी मां जगदंबा को आता देखकर ब्रह्मा, विष्णु सहित अन्य देवताओं ने हाथ जोड़कर उन्हें प्रणाम किया। अपने पुत्रों को देख भगवान शिव उन्हें प्यार करने लगे।
तब देवी पार्वती भगवान शिवजी को अपने साथ लेकर अपने भवन के भीतर चली गईं।
भगवान शिवजी के इस प्रकार बिना कुछ कहे अपने भवन में चले जाने के कारण सब देवता बहुत दुखी हो गए परंतु उन्होंने वहीं खड़े रहकर भगवान शिव की प्रतीक्षा करने का निर्णय लिया।
उस समय वे दैत्यों के भाग्य की प्रशंसा करने लगे।
वे सब देवता वहीं शिवजी के भवन के द्वार पर खड़े थे। तभी भगवान शिवजी के गण ने अपने स्वामी के द्वार के सामने भीड़ जमा देखकर उन पर आक्रमण कर दिया। देवता इस अनजान खतरे से संभल न सके और अपने प्राणों की रक्षा के लिए इधर-उधर दौड़ने लगे।
कई साधु और ऋषिगण गिर पड़े। चारों ओर हाहाकार मच गया। तब भयभीत होकर सब देवता भगवान श्रीहरि विष्णु की शरण में गए। देवताओं को समझाते हुए श्रीहरि विष्णु ने कहा, देवताओ तथा मुनिगणो!
आप लोग क्यों इतना दुखी हो रहे हैं? महान पुरुषों की आराधना करने में दुख तो आते ही हैं। इन कष्टों को झेलकर ही भक्त की दृढ़ता बढ़ती है और तब वह अपने आराध्य देवों को प्रसन्न कर पाता है
भगवान शिवजी तो समस्त गणों के अध्यक्ष तथा परमेश्वर हैं। आप सब मिलकर भगवान आशुतोष की प्रसन्नता के लिए ‘ॐ नमः शिवाय। शुभं शुभं कुरु कुरु शिवाय नमः ॐ’ मंत्र का एक करोड़ बार जाप करो।
वे इससे अवश्य ही प्रसन्न होंगे और और ह हमारा कार्य पूरा करेंगे।भगवान श्रीहरि विष्णु के इन वचनों को सुनकर सभी देवता बहुत प्रसन्न हुए और सहर्ष भगवान शिवजी की आराधना करने लगे।
अपने कार्य की सिद्धि के लिए उन्होंने एक करोड़ बार विष्णुजी द्वारा बताए गए मंत्र का जाप करना आरंभ कर दिया। जैसे ही उनकी यह आराधना संपन्न हुई, भगवान शिव उनके सामने प्रकट हो गए।
भगवान शिवजी बोले- मैं आपकी इस उत्तम आराधना से बहुत प्रसन्न हूं। आप अपना इच्छित वर मांगें। प्रभु के ये वचन सुनकर देवता बोले- हे देवाधिदेव! हे जगदीश्वर! आप सबके कल्याणकर्ता हैं।
भगवन्, हम पर कृपा कर हमारी रक्षा कीजिए। आप त्रिपुर स्वामियों का वध करके हमें भय से मुक्ति दिलाएं। तब भगवान शिव देवताओं की प्रार्थना सुनकर पुनः बोले- हे हरे! हे ब्रह्मन्! है देवगण तथा मुनियो! जैसा आप चाहते हैं वैसा ही होगा।
मैं अवश्य ही आपकी आराधना सफल करूंगा। हे विष्णो! आप इस जगत के पालनकर्ता हैं। इसलिए त्रिपुर विनाश के लिए आप मेरी सहायता करें। मेरे लिए दिव्य रथ, सारथी और धनुष सहित आवश्यक सामग्री की व्यवस्था करें।
सनत्कुमार जी बोले- मुने! भगवान शिव की इच्छा जानकर सब देवता बहुत प्रसन्न हुए तथा शिवजी की आज्ञानुसार समस्त युद्ध सामग्री की व्यवस्था करने लगे।
मुने! देवताओं द्वारा शिवजी को प्रसन्न करने के लिए एक करोड़ बार जपा गया यह मंत्र महान पुण्यदायी है।
यह शिवजी को तुरंत प्रसन्न करने वाला तथा भक्ति-मुक्ति के मार्ग पर ले जाने वाला है। यह मंत्र शिवभक्तों की सभी कामनाओं और इच्छाओं को पूरा करता है।
इस मंत्र से धन, यश की प्राप्ति होती है और आयु में वृद्धि होती है।
यह निष्काम मनुष्यों के लिए मोक्ष प्राप्ति का साधन है। जो मनुष्य भक्तिभाव और शुद्ध हृदय से इस मंत्र को जपता है, उसकी सभी अभिलाषाएं भक्तवत्सल कल्याणकारी भगवान शिव अवश्य ही पूरी करते हैं।