IUNNATI SHIV PURAN शिव पुराण :  छठवां अध्याय – श्री रुद्र संहिता( पंचम खण्ड)

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शिव पुराण

छठवां अध्याय - श्री रुद्र संहिता( पंचम खण्ड) ( शिव )

विषय त्रिपुर सहित उनके स्वामियों के वध की प्रार्थना

व्यास जी ने पूछा- हे सनत्कुमार जी! जब उन त्रिपुर स्वामियों की बुद्धि उनकी प्रजा सहित मोहित हो गई तब क्या हुआ? कौन-सी घटना घटी? प्रभो! कृपा कर इस विषय में मेरे ज्ञान को बढ़ाइए।
 
तब व्यास जी के प्रश्न का उत्तर देते हुए सनत्कुमार जी बोले- हे महर्षि! जब उन तीनों पुरों का मुख पूर्व दिशा की ओर हो गया और तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली नामक दैत्यों ने भगवान शिव का पूजन और अर्चन छोड़ दिया, तब उनके राज्य में चारों ओर दुराचार फैल गया।
 
उस समय भगवान विष्णु और ब्रह्माजी सभी देवताओं के साथ भगवान शिव की स्तुति करने कैलाश पर्वत पर गए। वहां पहुंचकर उन्होंने शिवजी को साष्टांग प्रणाम किया।

तत्पश्चात देवता बोले- हे देवाधिदेव! हे करुणानिधान! आप सभी जीवों के आत्मस्वरूप, कल्याण करने वाले और अपने भक्तों की पीड़ा हरने वाले हैं। गले में नीला चिन्ह होने के कारण आप नीलकंठ कहलाते हैं। हम हाथ जोड़कर आपको प्रणाम करते हैं।

आप सब प्राणियों एवं देवताओं के लिए वंदनीय हैं। तथा सबकी बाधाओं और विपत्तियों को दूर करते हैं। भगवन्! आप ही रजोगुण, सतोगुण और तमोगुण के आश्रय से ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अवतार धरकर जगत की सृष्टि, पालन और संहार करते हैं।

आप ही अपने भक्तों को इस भवसागर से पार कराने वाले हैं। वेद आपके परब्रह्म स्वरूप और तत्वरूप का वर्णन करते हैं। आप सर्वव्यापी, सर्वात्मा और इन तीनों लोकों के अधिपति हैं। आप सूर्य से भी अधिक तेजस्वी और दीप्तिमान हैं।

हम आपको नमस्कार करते हैं। आप ही इस प्रकृति के प्रवर्तक हैं तथा सब प्राणियों के शरीर में रहते हैं। ऐसे परमेश्वर को हम प्रणाम करते हैं।

हे शिव शंभो। तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली नामक त्रिपुर स्वामियों ने हम देवताओं को अनेकों प्रकार से परेशान कर प्रताड़ित किया है। वे देवताओं का विनाश करने के लिए उन्मुख हैं।

हे प्रभो! हम आपकी शरण में आए हैं। भगवन् ! उन असुरों का विनाश करके हमारी रक्षा कीजिए। इस समय तीनों असुरों ने धर्म मार्ग को छोड़ दिया है और नास्तिक शास्त्र का पालन कर रहे हैं। आपकी इच्छा के अनुरूप तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली तीनों धर्म-कर्म से विमुख हो गए हैं।
 
अतः अब आप उनका वध कर देवताओं को मुक्ति दिलाइए। इस प्रकार कहकर सभी देवता चुप हो मस्तक झुकाकर खड़े हो गए। तब भगवान शिव बोले- हे देवताओ! तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली तीनों ही यद्यपि धर्म से विमुख होकर धन, वैभव और ऐश्वर्य रूप में डूबकर सबकुछ भूल गए हैं,
 
परंतु फिर भी वे मेरे असीम भक्त रहे हैं। जब भगवान विष्णु ने उन त्रिपुर स्वामियों को वहां की प्रजा के साथ मोहित कर धर्म-कर्म से विमुख कर ही दिया है तो वे स्वयं ही उनका वध क्यों नहीं कर देते? शिवजी के ये वचन सुनकर ब्रह्माजी बोले- हे परमेश्वर! आप भक्तवत्सल हैं।
 
पाप आपसे कोसों दूर भागता है। प्रभु! आपकी आज्ञा के बिना इस जगत में पत्ता तक नहीं हिलता।
 भगवन्! आपकी इच्छा के अनुरूप ही विष्णुजी ने उन सबको मोहित कर पथभ्रष्ट किया है। अब आप उन त्रिपुर स्वामियों का वध करके इस जगत का उद्धार कीजिए। प्रभु! आप तो इस जगत का आधार हैं। हम सब आपके सेवक हैं और आपकी आज्ञा के अनुसार कार्य को पूरा करते हैं।
 
आप सम्राट और हम आपकी प्रजा हैं। ब्रह्माजी के इन वचनों को सुनकर भगवान शिव प्रसन्न होकर बोले- हे ब्रह्मन् ! आप मुझे देवताओं का सम्राट कह रहे हैं। पर आप ऐसा कैसे कह सकते हैं, जबकि आप जानते हैं कि मेरे पास न तो कोई दिव्य रथ है और न ही कोई सारथी है।
 
फिर भला में कैसे उन सर्व सुविधा संपन्न त्रिपुर स्वामियों को युद्ध में परास्त कर पाऊंगा? मेरे पास तो धनुष भी नहीं है जिससे मैं उन दैत्यों का वध कर सकूं।भगवान शिव के यह कहते ही सब देवता प्रसन्न हो गए।
 
उन्होंने कहा कि प्रभु ! यदि आप उनका वध करने के लिए तैयार हैं तो हम सभी आपके लिए रथ तथा अन्य शस्त्र सामग्री का प्रबंध कर देंगे।
 

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