IUNNATI ADHYATMIK UNNATI भोजेश्वर मंदिर – भोजपुर(मध्य प्रदेश)

भोजेश्वर मंदिर – भोजपुर(मध्य प्रदेश)

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*भारत के भव्य, दिव्य, अकल्पनीय मन्दिर : भोजेश्वर मंदिर, भोजपुर(मध्य प्रदेश)

_”भारत के भव्य और अकल्पनीय मन्दिरों से हिन्दुओं परिचय करवाने की इस श्रृंखला में आज हम आपका परिचय करवा रहे हैं भारत के सबसे बड़े शिवलिंग वाले एक अपूर्ण रह गए भोजपुर(मध्य प्रदेश के भोजेश्वर मंदिर से”_

भोजपुर से लगती हुई पहाड़ी पर एक विशाल, अधूरा शिव मंदिर है भोजेश्वर मन्दिर कहा जाने वाला यह मंदिर मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग ३०(30) किलोमीटर दूर स्थित भोजपुर नामक गाँव में बना है। इसे भोजपुर मन्दिर भी कहते हैं। यह मन्दिर बेतवा नदी के तट पर विन्ध्य पर्वतमालाओं के मध्य एक पहाड़ी पर स्थित है। मन्दिर का निर्माण एवं इसके शिवलिंग की स्थापना धार के प्रसिद्ध परमार राजा भोज १०१० – १०५३(1010-1053) ई॰ ने करवायी थी। उनके नाम पर ही इसे भोजपुर मन्दिर या भोजेश्वर मन्दिर भी कहा जाता है, इसे “उत्तर भारत का सोमनाथ” भी कहा जाता है।

मन्दिर निर्माण की स्थापत्य योजना का विवरण खदान भाग के निकटस्थ पत्थरों पर उकेरा गया है। इस योजना से ज्ञात होता है कि यहाँ एक वृहत मन्दिर परिसर बनाने की योजना थी, जिसमें ढेरों अन्य मन्दिर भी बनाये जाने थे। इस योजना के सफ़लतापूर्वक सम्पन्न हो जाने पर ये मन्दिर परिसर भारत के सबसे बड़े मन्दिर परिसरों में से एक होता। मन्दिर के बाहर लगे पुरातत्त्व विभाग के शिलालेख अनुसार इस मंदिर का शिवलिंग भारत के मन्दिरों में सबसे ऊँचा एवं विशालतम शिवलिंग है। इस मन्दिर का प्रवेशद्वार भी किसी हिन्दू भवन के दरवाजों में सबसे बड़ा है।

राजा भोज ने अकेले अपनी राजधानी धार में ही १०४(104) मन्दिरों का निर्माण करवाया था। हालांकि मुस्लिमों आक्रांताओं के मंदिर तोड़ने की परंपरा व कालचक्र के प्रभाव से आज की तिथि में केवल भोजपुर मन्दिर ही अकेला बचा स्मारक है।

*भारत के अद्भुत, अकल्पनीय, ऐतिहासिक मन्दिरों से सम्बंधित इस श्रृंखला का उद्देश्य, दशकों की इस्लामी-ईसाई गुलामी के कारण आत्मकुंठा में डूबे  धिम्मी हिंदुओं को सदियों पुराने भव्य-दिव्य मन्दिरों के माध्यम से अपने महान हिन्दू पूर्वजों के समर्पण, कला-कौशल, पुरुषार्थ, जिजीविषा व भक्ति परम्परा के अक्षुण्ण गौरवशाली इतिहास से परिचित करवाकर, उन्हें इतिहासबोधसम्पन्न गर्वित हिन्दू बनाना है।*

|| जय हिन्दू राष्ट्र ||

Bhojeshwar Temple, Bhojpur (Madhya Pradesh)*

*Grand, divine, unimaginable temples of India: Bhojeshwar Temple, Bhojpur (Madhya Pradesh)*

_”In this series of introducing Hindus to the grand and unimaginable temples of India, today we are introducing you the one with India’s largest Shivling which remained incomplete from Bhojpur (Bhojeshwar Temple in Madhya Pradesh)”_

There is a huge, unfinished Shiva temple on the hill adjacent to Bhojpur. This temple called Bhojeshwar Temple is built in a village called Bhojpur, about 30 (30) kilometers away from Bhopal, the capital of Madhya Pradesh. It is also called Bhojpur temple. This temple is situated on a hill in the middle of the Vindhya ranges on the banks of Betwa river. The construction of the temple and the establishment of its Shivling was done by the famous Parmar king Bhoj 1010-1053 (1010-1053) AD of Dhar. It is also called Bhojpur Temple or Bhojeshwar Temple after his name, it is also called “Somnath of North India”.

The details of the architectural plan for the construction of the temple have been engraved on the stones near the mine portion. It is known from this plan that there was a plan to build a big temple complex here, in which many other temples were also to be built. If this plan was successfully completed, this temple complex would have been one of the largest temple complexes in India. According to the inscription of the Archaeological Department outside the temple, the Shivling of this temple is the tallest and largest Shivling in the temples of India. The entrance of this temple is also the biggest among the doors of any Hindu building.

Raja Bhoj had got 104 (104) temples constructed in his capital Dhar alone. However, due to the tradition of breaking temples by Muslim invaders and the effect of time cycle, only Bhojpur temple is the only remaining monument in today’s date.

*The purpose of this series related to the wonderful, unimaginable, historical temples of India, to show the dedication, art-skills, art-skills of their great Hindu ancestors through centuries-old grand-divine temples to the slow Hindus drowned in self-frustration due to decades of Islamic-Christian slavery. By introducing them to the intact glorious history of Purusharth, Jijivisha and Bhakti tradition, we have to make them proud Hindus with sense of history.*

|| Hail Hindu nation ||

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