16 सिद्धिया प्राप्त…. सुना तो होगा….
आइये जानिए कि वह 16 सिद्धिया
1. वाक् सिद्धि
जो भी वचन बोले जाए वे व्यवहार में पूर्ण हों, वह वचन कभी व्यर्थ न जाये, प्रत्येक शब्द का महत्वपूर्ण अर्थ हो, वाक् सिद्धि युक्त व्यक्ति में श्राप और वरदान देने की क्षमता होती हैं….
2. दिव्य दृष्टि सिद्धि:
दिव्यदृष्टि का तात्पर्य है कि जिस व्यक्ति के सम्बन्ध में भी चिन्तन किया जाये, उसका भूत, भविष्य और वर्तमान एकदम सामने आ जाये, आगे क्या कार्य करना है, कौन सी घटनाएं घटित होने वाली हैं, इसका ज्ञान होने पर व्यक्ति दिव्यदृष्टियुक्त महापुरुष बन जाता है……
3. प्रज्ञा सिद्धि :
प्रज्ञा का तात्पर्य यह है कि मेधा अर्थात स्मरणशक्ति, बुद्धि, ज्ञान इत्यादि…. ज्ञान के सम्बंधित सारे विषयों को जो अपनी बुद्धि में समेट लेता है वह प्रज्ञावान कहलाता है, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से सम्बंधित ज्ञान के साथ-साथ भीतर एक चेतनापुंज जाग्रत रहता है….
4. दूरश्रवण सिद्धि :-
इसका तात्पर्य यह है कि भूतकाल में घटित कोई भी घटना, वार्तालाप को पुनः सुनने की क्षमता…..
5. जलगमन सिद्धि:-
यह सिद्धि निश्चय ही महत्वपूर्ण है, इस सिद्धि को प्राप्त योगी जल, नदी, समुद्र पर इस तरह विचरण करता है मानों धरती पर गमन कर रहा हो….
6. वायुगमन सिद्धि :-
इसका तात्पर्य है अपने शरीर को सूक्ष्मरूप में परिवर्तित कर एक लोक से दूसरे लोक में गमन कर सकता है, एक स्थान से दूसरे स्थान पर सहज तत्काल जा सकता है….
7. अदृश्यकरण सिद्धि:-
अपने स्थूल शरीर को सूक्ष्म रूप में परिवर्तित कर अपने आप को अदृश्य कर देना…. जिससे स्वयं की इच्छा बिना दूसरा उसे देख ही नहीं पाता है….
8. विषोका सिद्धि :-
इसका तात्पर्य है कि अनेक रूपों में अपने आपको परिवर्तित कर लेना… एक स्थान पर अलग रूप है, दूसरे स्थान पर अलग रूप है…..
9. देवक्रियानुदर्शन सिद्धि :-
इस क्रिया का पूर्ण ज्ञान होने पर विभिन्न देवताओं का साहचर्य प्राप्त कर सकता है। उन्हें पूर्ण रूप से अनुकूल बनाकर उचित सहयोग लिया जा सकता है…..
10. कायाकल्प सिद्धि:-
कायाकल्प का तात्पर्य है शरीर परिवर्तन। समय के प्रभाव से देह जर्जर हो जाती है, लेकिन कायाकल्प कला से युक्त व्यक्ति सदैव रोगमुक्त और यौवनवान ही बना रहता है….
11. सम्मोहन सिद्धि :-
सम्मोहन का तात्पर्य है कि सभी को अपने अनुकूल बनाने की क्रिया। इस कला को पूर्ण व्यक्ति मनुष्य तो क्या, पशु-पक्षी, प्रकृति को भी अपने अनुकूल बना लेता है…..
12. गुरुत्व सिद्धि:-
गुरुत्व का तात्पर्य है गरिमावान। जिस व्यक्ति में गरिमा होती है, ज्ञान का भंडार होता है, और देने की क्षमता होती है, उसे गुरु कहा जाता है। और भगवन कृष्ण को तो जगद्गुरु कहा गया है…..
13. पूर्ण पुरुषत्व सिद्धि:-
इसका तात्पर्य है अद्वितीय पराक्रम और निडर, एवं बलवान होना। श्रीकृष्ण में यह गुण बाल्यकाल से ही विद्यमान था… जिस के कारण से उन्होंने ब्रजभूमि में राक्षसों का संहार किया… तदनंतर कंस का संहार करते हुए पुरे जीवन शत्रुओं का संहार कर आर्यभूमि में पुनः धर्म की स्थापना की….
14. सर्वगुण संपन्न सिद्धि:-
जितने भी संसार में उदात्त गुण होते हैं, सभी कुछ उस व्यक्ति में समाहित होते हैं, जैसे – दया, दृढ़ता, प्रखरता, ओज, बल, तेजस्विता, इत्यादि। इन्हीं गुणों के कारण वह सारे विश्व में श्रेष्ठतम व अद्वितीय बन जाता है, और इसी प्रकार यह विशिष्ट कार्य करके संसार में लोकहित एवं जनकल्याण करता है…..
15. इच्छा मृत्यु सिद्धि :-
इन कलाओं से पूर्ण व्यक्ति कालजयी होता है, काल का उस पर किसी प्रकार का कोई बंधन नहीं रहता, वह जब चाहे अपने शरीर का त्याग कर नया शरीर धारण कर सकता है……
16. अनुर्मि सिद्धि:-
अनुर्मि का अर्थ है… जिस पर भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी और भावना-दुर्भावना का कोई प्रभाव ||
GYAAN KA BHANDAAR
HARI BOL