शिव पुराण
पैंतीसवां अध्याय – श्री रूद्र संहिता (तृतीय खंड)
विषय :–हिमालय का शिवजी के साथ पार्वती के विवाह का निश्चय करना
ब्रह्माजी बोले- नारद! महर्षि वशिष्ठ ने, राजा अनरण्य की पुत्री पद्मा और ऋषि पिप्पलाद के विवाह तथा धर्मराज द्वारा पद्मा को प्रदान किए गए वरदान की कथा सुनाकर कि पिप्पलाद स्थिर रहने वाले यौवन के स्वामी होंगे, इंद्र के समान सुंदर व वैभव से संपन्न होंगे और दस सर्वगुण संपन्न पुत्रों की उन्हें प्राप्ति होगी, शैलराज हिमालय से कहा कि राजन! मैं आपसे प्रार्थना करता हूं कि आपके और आपकी पत्नी मैना के मन में, जो भी नाराजगी है, उसे भूलकर आप अपनी पुत्री पार्वती का विवाह त्रिलोकीनाथ महादेव जी के साथ कर दें। आज से एक सप्ताह बाद का मुहूर्त जब रोहिणी नक्षत्र में चंद्रमा अपने पुत्र बुध के साथ लग्न में स्थित होंगे, अत्यंत शुभ है। मार्गशीर्ष माह के सोमवार को लग्न में सभी शुभ ग्रहों की दृष्टि होगी। उस समय बृहस्पति भी सौभाग्य के वश में होंगे। ऐसे शुभ मुहूर्त में अपनी पुत्री पार्वती, जो कि साक्षात जगदंबा का अवतार हैं, का पाणिग्रहण भक्तवत्सल भगवान शिव से कर देने पर आप अपने आपको धन्य समझेंगे।
यह कहकर ज्ञान शिरोमणि मुनि वशिष्ठ चुप हो गए। उनकी बात सुनकर मैना और हिमालय आश्चर्यचकित रह गए और अन्य पर्वतों से बोले- गिरिराज मेरु! मंदराचल, मैनाक, गंधमादन, सह्य, विंध्य आप सभी ने मुनिराज वशिष्ठ के वचनों को सुना है। कृपया आप सब मुझे यह बताइए कि इन परिस्थितियों में मुझे क्या करना चाहिए? आप सभी इस संबंध में मुझे अपने विचारों से अवगत कराइए।
शैलराज हिमालय के कहे इन वचनों को सुनकर सभी पर्वतों ने आपस में विचार-विमर्श किया और बोले- हे गिरिराज हिमालय! इस समय ज्यादा सोच-विचार करने से कुछ नहीं होगा। अच्छा यही है कि हम सप्तऋषियों द्वारा कही गई बात को मानकर देवी पार्वती का विवाह शिवजी से करा दें। क्योंकि वास्तव में पार्वती का जन्म ही देवताओं के कार्यों को पूरा करने के लिए हुआ है। अतः हमें शीघ्र ही उनकी अमानत उनके हाथों में सौंपकर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाना चाहिए।
तब सुमेरु तथा अन्य पर्वतों की बात सुनकर हिमालय प्रसन्न हुए और देवी पार्वती भी मन ही मन मुस्कुराने लगीं। देवी अरुंधती ने भी विविध प्रकार की कथाओं को सुनाकर पार्वती की माता मैना को समझाने का प्रयत्न किया। मैना जब समझ गई तो बहुत प्रसन्न हुई और उन्होंने सभी को उत्तम भोजन कराया। उनके मन का सारा संदेह और भय दूर हो गया। शैलराज हिमालय ने दोनों हाथ जोड़कर उन सप्तऋषियों से कहा कि आपकी बातों को सुनकर मेरे मन का सारा शक दूर हो गया है। मैं भली-भांति जान गया हूं कि शिवजी ही ईश्वरों के भी ईश्वर अर्थात सर्वेश्वर हैं। वे इस जगत के कण-कण में व्याप्त हैं। वे अतुलनीय हैं। इस संसार की हर वस्तु एवं हर प्राणी उन्हीं का है। यह कहकर हिमालय ने अपनी पुत्री पार्वती का हाथ पकड़कर उसे सप्तऋषियों के पास खड़ा कर दिया और बोले कि आज से मेरी पुत्री शिवजी की अमानत है। वे जब चाहें इसे यहां से ले जा सकते हैं। ऋषिगण शैलराज की बातें सुनकर प्रसन्न हुए और बोले-
भगवान शिवजी आपकी पुत्री को स्वयं मांगकर आपको सौभाग्य प्रदान कर रहे हैं। यह कहकर वे ऋषिगण पार्वती को आशीर्वाद देने लगे और बोले- देवी! आपका कल्याण हो तथा आपके गुणों में निरंतर वृद्धि हो। आप शिवजी की अर्द्धांगिनी बनकर उनका जीवन खुशियों से भर दें। सप्तऋषियों ने सुविचार करके चार दिनों के बाद का शुभ मुहूर्त विवाह के लिए निकाला। तब शैलराज हिमालय और देवी मैना से आज्ञा लेकर वे सप्तऋषि देवी अरुंधती सहित वहां से भगवान शिव के पास चले गए।