शिव पुराण
छत्तीसवां अध्याय – श्री रूद्र संहिता (तृतीय खंड)
विषय :–सप्तऋषियों का शिव के पास आगमन
ब्रह्माजी बोले- हे मुनिश्रेष्ठ नारद! शैलराज हिमालय और मैना से विदा लेकर सप्तऋषि भगवान शिव के निवास स्थल कैलाश पर्वत पर पहुंचे। वहां पहुंचकर उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर शिवजी को प्रणाम किया और उनकी भक्तिभाव से स्तुति की। तत्पश्चात उन्होंने कहना आरंभ किया। हे देवाधिदेव ! महादेव! परमेश्वर ! महाप्रभो! महेश्वर ! हमने गिरिराज हिमालय और मैना को समझा दिया है। वे इस संबंध को स्वीकार कर चुके हैं। उन्होंने पार्वती का वाग्दान कर दिया है।
हे प्रभु! अब आप अपने पार्षदों तथा देवताओं के साथ बारात लेकर हिमालय के यहां जाइए और देवी पार्वती का पाणिग्रहण संस्कार करिए। भगवन्, आप वेदोक्त रीति से पार्वती को अपनी पत्नी बना लीजिए सप्तऋषियों का यह वचन सुनकर त्रिलोकीनाथ भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और बोले – हे ऋषिगण! मैं विवाह के रीति-रिवाजों के संबंध में कुछ नहीं जानता। आप लोगों ने पूर्व में विवाह की जो रीति देखी हो अथवा इस विषय में आप जो कुछ जानते हो कृपया मुझे बताएं।
भगवान शिव के इस शुभ वचन को सुनकर सप्तऋषि बोले- भगवन्! आप सर्वप्रथम श्रीहरि विष्णु एवं सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी को उनके पुत्रों एवं पार्षदों सहित यहां बुला लीजिए। सभी ऋषि-मुनियों, यक्ष, गंधर्वो, किन्नरों, सिद्धगणों एवं देवराज इंद्र सहित सभी देवताओं और अप्सराओं को अपने विवाह में आमंत्रित करें। वे सब मिलकर इस विवाह का सफल आयोजन करेंगे। ऐसा कहकर सप्तऋषि भगवान शिव से आज्ञा लेकर उनकी भक्तिभाव से स्तुति करते हुए प्रसन्नतापूर्वक अपने धाम को चले गए।