IUNNATI SHIV PURAN शिव पुराण इकतालीसवां अध्याय – मंडप वर्णन व देवताओं का भय

शिव पुराण इकतालीसवां अध्याय – मंडप वर्णन व देवताओं का भय

शिव पुराण 

 इकतालीसवां अध्याय – श्री रूद्र संहिता( तृतीय खंड)

 विषय:–मंडप वर्णन व देवताओं का भय

ब्रह्माजी बोले- हे मुनिश्रेष्ठ नारद ! तुम भी भगवान शिव की बारात में सहर्ष शामिल हुए थे। भगवान शिव ने श्रीहरि विष्णु से सलाह करके सबसे पहले तुमको हिमालय के पास भेजा, वहां पहुंचकर तुमने विश्वकर्मा के बनाए दिव्य और अनोखे मंडप को देखा तो बहुत आश्चर्यचकित रह गए। विश्वकर्मा द्वारा बनाई गई विष्णु, ब्रह्मा, समस्त देवताओं की मूर्तियों को देखकर यह कह पाना कठिन था कि ये असली हैं या नकली। वहां रत्नों से जड़े हुए लाखों कलश रखे थे। बड़े-बड़े केलों के खंभों से मण्डप सजा हुआ था। तुम्हें वहां आया देखकर शैलराज हिमालय ने तुमसे पूछा कि देवर्षि क्या भगवान शिव बारात के साथ आ गए हैं?

 तब तुम्हें साथ लेकर हिमालय के नय के पुत्र मैनाक आदि तुम्हारे साथ बारात की अगवानी के लिए आए। तब मैंने और विष्णुजी ने भी तुमसे वहां के समाचार के बारे में पूछा। हमने तुमसे यह भी पूछा कि शैलराज हिमालय अपनी पुत्री पार्वती का विवाह भगवान शिव से करने के इच्छुक हैं या नहीं? कहीं उन्होंने अपना इरादा बदल तो नहीं दिया है। यह प्रश्न सुनकर आप मुझे विष्णुजी और देवराज इंद्र को एकांत स्थान पर ले गए और वहां जाकर तुमने वहां के बारे में बताना शुरू किया। तुमने कहा कि हे देवताओ। शैलराज हिमालय ने शिल्पी विश्वकर्मा से एक ऐसे मंडप की रचना करवाई है जिसमें आप सब देवताओं के जीते-जागते चित्र लगे हुए हैं। उन्हें देखकर मैं तो अपनी सुध-बुध ही खो बैठा था। इसे देखकर मुझे यह लगता है कि गिरिराज आप सब लोगों को मोहित करना चाहते हैं। यह सुनकर देवराज इंद्र भय के मारे कापंने लगे और बोले- हे लक्ष्मीपति विष्णुजी! मैंने त्वष्टा के पुत्र को मार दिया था। कहीं उसी का बदला लेने के लिए मुझ पर विपत्ति न आ जाए। मुझे संदेह हो रहा है कि कहीं मैं वहां जाकर मारा न जाऊं। तब इंद्र के वचन सुनकर श्रीहरि विष्णु बोले कि- इंद्र! मुझे भी यही लगता है कि वह मूर्ख हिमालय हमसे बदला लेना चाहता है क्योंकि मेरी आज्ञा से ही तुमने पर्वतों के पंखों को काट दिया था। शायद यह बात आज तक उन्हें याद है और वे हम सब पर विजय पाना चाहते हैं, परंतु हमें डरना नहीं चाहिए। हमारे साथ तो स्वयं महादेव जी हैं, भला फिर हमें कैसा भय? हमें इस प्रकार गुप-चुप बातें करते देखकर भगवान शिव ने लौकिक गति से हमसे बात की और पूछा- हे देवताओ! क्या बात है? मुझे स्पष्ट बता दो। शैलराज हिमालय मुझसे अपनी पुत्री पार्वती का विवाह करना चाहते हैं या नहीं? इस प्रकार यहां व्यर्थ बातें करते रहने से भला क्या लाभ?

भगवान शिव के इन वचनों को सुनकर नारद तुम बोले- हे देवाधिदेव! शिवजी। गिरिजानंदिनी पार्वती से आपका विवाह तो निश्चित है। उसमें भला कोई विघ्न बाधा कैसे आ सकती है? तभी तो शैलराज हिमालय ने अपने पुत्रों मैनाक आदि को मेरे साथ बारात की  अगवानी के लिए यहां भेजा है। मेरी चिंता का कारण दूसरा है। प्रभु! आपने मुझे हिमालय के यहां बारात के आगमन की सूचना देने के लिए भेजा था। जब मैं वहां पहुंचा तो मैंने विश्वकर्मा द्वारा बनाए गए मंडप को देखा। शैलराज हिमालय ने देवताओं को मोहित करने के लिए एक अद्भुत और दिव्य मंडप की रचना कराई है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि वे सब इतने जीवंत हैं कि कोई भी उन्हें देखकर मोहित हुए बगैर नहीं रह सकता। उन चित्रों को देखकर ऐसा महसूस होता है कि वे अभी बोल पड़ेंगे। प्रभु! उस मंडप में श्रीहरि, ब्रह्माजी, देवराज इंद्र सहित सभी देवताओं, ऋषि-मुनियों सहित अनेक जानवरों और पशु-पक्षियों के सुंदर व लुभावने चित्र बनाए गए हैं। यही नहीं, मंडप में आपकी और मेरी भी प्रतिमूर्ति बनी है, जिन्हें देखकर मुझे यह लगा कि आप सब लोग यहां न होकर वहीं हिमालय नगरी में पहुंच गए हैं। नारद! तुम्हारी बातें सुनकर भगवान शिव मुस्कुराए और देवताओं से बोले-आप सभी को भय की कोई आवश्यकता नहीं है। शैलराज हिमालय अपनी प्रिय पुत्री पार्वती हमें समर्पित कर रहे हैं। इसलिए उनकी माया हमारा क्या बिगाड़ सकती है? आप अपने भय को त्यागकर हिमालय नगरी की ओर प्रस्थान कीजिए। भगवान शिव की आज्ञा पाकर सभी बाराती भयमुक्त होकर उत्साह और प्रसन्नता के साथ पुनः नाचते-गाते शिव-बारात में चल दिए। शैलराज हिमालय हमालय के पुत्र मैनाक आगे-आगे चल रहे थे और बाकी सभी उनका अनुसरण कर उनके पीछे-पीछे चल रहे थे। इस प्रकार बारात हिमालयपुरी जा पहुंची।

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