IUNNATI SHIV PURAN शिव पुराण  पहला अध्याय

शिव पुराण  पहला अध्याय

शिव पुराण

 पहला अध्याय – श्रीरुद्र संहिता (प्रथम खण्ड – १ )

विषय :- ऋषिगणों की वार्ता

 जो विश्व की उत्पत्ति, स्थिति और लय आदि के एकमात्र कारण हैं, गिरिराजकुमारी उमा के पति हैं, जिनकी कीर्ति का कहीं अंत नहीं है, जो माया के आश्रय होकर भी उससे दूर हैं तथा जिनका स्वरूप दुर्लभ है, मैं उन भगवान शंकर की वंदना करता हूं। जिनकी माया विश्व की सृष्टि करती है। जैसे लोहा चुंबक से आकर्षित होकर उसके पास ही लटका रहता है, उसी प्रकार ये सारे जगत जिसके आसपास ही भ्रमण करते हैं, जिन्होंने इन प्रपंचों को रचने की विधि बताई है, जो सभी के भीतर अंतर्यामी रूप से विराजमान हैं, मैं उन भगवान शिव को नमन करता हूं।

 ऋषि बोले- हे सूत जी ! अब आप हमसे भगवान शिव व पार्वती के परम उत्तम व दिव्य स्वरूप का वर्णन कीजिए। सृष्टि की रचना से पूर्व, सृष्टि के मध्यकाल व अंतकाल में महेश्वर किस प्रकार व किस रूप में स्थित होते हैं? सभी लोकों का कल्याण करने वाले भगवान शिव कैसे प्रसन्न होते हैं? तथा प्रसन्न होने पर अपने भक्तों को कौन-कौन से उत्तम फल देते हैं? हमने सुना है कि भगवान शिव महान दयालु हैं। अपने भक्तों को कष्ट में नहीं देख सकते। ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवता शिवजी के अंग से ही उत्पन्न हुए हैं। हम पर कृपा कर शिवजी के प्राकट्य, देवी उमा की उत्पत्ति, शिव-उमा विवाह, गृहस्थ धर्म एवं शिवजी के अनंत चरित्रों को सुनाइए ।*  

 सूत जी बोले- हे ऋषियो ! आप लोगों के प्रश्न पतित पावनी श्री गंगाजी के समान हैं। ये सुनने वालों, कहने वालों और पूछने वालों इन तीनों को पवित्र करने वाले हैं। आपकी इस कथा को सुनने की आंतरिक इच्छा है, इसलिए आप धन्यवाद के पात्र हैं। ब्राह्मणो ! भगवान शंकर का रूप साधु, राजसी और तामसी तीनों प्रकृति के मनुष्यों को सदा आनंद प्रदान करने वाला है। वे मनुष्य, जिनके मन में कोई तृष्णा नहीं है, ऐसे-ऐसे महात्मा पुरुष भगवान शिव गुणों का ज्ञान करते हैं क्योंकि शिव की भक्ति मन और कानों को प्रिय लगने वाली और संपूर्ण मनोरथों को देने वाली है। हे ऋषियो ! मैं आपके प्रश्नों के अनुसार ही शिव के चरित्रों का वर्णन करता हूं, आप उसे आदरपूर्वक श्रवण करें। आपके प्रश्नों के अनुसार ही नारद जी ने अपने पिता ब्रह्माजी से यही प्रश्न किया था, तब ब्रह्माजी ने प्रसन्न होकर शिव चरित्र सुनाया था। उसी संवाद को मैं तुम्हें सुनाता हूं क्योंकि उस संवाद में भवसागर से मुक्त कराने वाले गौरीश की अनेकों आश्चर्यमयी लीलाएं वर्णित हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Post

शिव पुराण अड़तीसवां अध्याय – दधीचि क्षुव विवादशिव पुराण अड़तीसवां अध्याय – दधीचि क्षुव विवाद

शिव पुराण  अड़तीसवां अध्याय – श्री रूद्र संहिता (द्वितीय खंड) विषय:- दधीचि क्षुव विवाद सूत जी कहते हैं- हे महर्षियो! ब्रह्माजी के द्वारा कही हुई कथा को सुनकर नारद जी

शिव पुराण बीसवां अध्याय : शिव सती का विदा होकर कैलाश जानाशिव पुराण बीसवां अध्याय : शिव सती का विदा होकर कैलाश जाना

शिव पुराण   बीसवां अध्याय- श्री रूद्र संहिता (द्वितीय खंड) विषय:-शिव सती का विदा होकर कैलाश जाना ब्रह्माजी बोले- हे महामुनि नारद! मुझे मेरा मनोवांछित वरदान देने के पश्चात भगवान शिव

शिव

शिव पुराण पचासवां अध्याय : विवाह संपन्न और शिवजी से विनोदशिव पुराण पचासवां अध्याय : विवाह संपन्न और शिवजी से विनोद

शिव पुराण  पचासवां अध्याय – श्री रूद्र संहिता (तृतीय खण्ड) विषय:– विवाह संपन्न और शिवजी से विनोद ब्रह्माजी बोले- हे नारद! उसके बाद मैंने भगवान शिव की आज्ञा पाकर शिव-पार्वती