शिव पुराण
उन्तालीसवां अध्याय – श्री रूद्र संहिता (तृतीय खंड)
विषय:–शिवजी का देवताओं को निमंत्रण
नारद जी बोले- हे महाप्रज्ञ! हे विधाता! आपको नमस्कार है। आपने अपने श्रीमुख से मुझे अमृत के समान दिव्य और अलौकिक कथा को सुनाया है। अब में भगवान चंद्रमौली के मंगलमय वैवाहिक जीवन का सार सुनना चाहता हूं, जो कि समस्त पापों का नाश करने वाला है। भगवन् कृपा कर मुझे यह बताइए कि जब शैलराज हिमालय द्वारा भेजी गई लग्न पत्रिका महादेव जी को प्राप्त हो गई तो महादेव जी ने क्या किया? प्रभो! इस अमृत कथा को सुनाने की कृपा कीजिए।
ब्रह्माजी बोले- हे मुनिश्रेष्ठ नारद ! लग्न पत्रिका को पाकर भगवान शिव ने मन में बहुत हर्ष का अनुभव किया। लग्न पत्रिका लेकर आए शैलराज के बंधु-बांधवों का उन्होंने यथायोग्य आदर-सत्कार किया। तत्पश्चात उन्होंने उस लग्न पत्रिका को पढ़कर स्वीकार किया तथा पत्रिका लेकर आए हुए लोगों को आदर-सम्मान से विदा किया। तब शिवजी प्रसन्नतापूर्वक सप्तऋषियों से बोले कि हे मुनियो। आपने मेरे लिए इस शुभ कार्य का संपादन किया है और मैंने इस विवाह हेतु अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी है। अतः आप सभी मेरे विवाह में सादर आमंत्रित हैं।
भगवान शिव के शुभ वचन सुनकर ऋषिगण बहुत प्रसन्न हुए और उनको आदरपूर्वक प्रणाम करके अपने धाम को चले गए। जब ऋषिगण कैलाश पर्वत से चले गए तब भक्तवत्सल भगवान शिव ने तुम्हारा स्मरण किया। तुम अपने सौभाग्य की प्रशंसा करते हुए तुरंत उनसे मिलने उनके धाम पहुंच गए। शिवजी के श्रीचरणों में तुमने मस्तक झुकाकर प्रणाम किया और वहां हाथ जोड़कर खड़े हो गए।
भगवान शिव बोले– हे नारद। तुम्हारे दिए गए उपदेश से प्रभावित होकर ही देवी पार्वती ने घोर तपस्या की और उससे प्रसन्न होकर मैंने उन्हें अपनी पत्नी बनाने का वरदान दे दिया है। पार्वती की भक्ति ने मुझे वश में कर लिया है। अब में उनके साथ विवाह करूंगा। सप्तऋषियों ने शैलराज हिमालय को संतुष्ट कर इस विवाह की स्वीकृति प्राप्त कर ली है और हिमालय की ओर से लग्न पत्रिका भी आ चुकी है। आज से सातवें दिन मेरे विवाह का दिन सुनिश्चित हुआ है। इस अवसर पर महान उत्सव होगा। अतः तुम श्रीहरि, ब्रह्मा, सब देवताओं, मुनियों और सिद्धों को मेरी ओर से निमंत्रण भेजो और उनसे कहो कि वे लोग उत्साह और प्रसन्नतापूर्वक सज-धजकर अपने-अपने परिवार के साथ सादर मेरे विवाह में पधारें। नारद। भगवान शिव की आज्ञा पाकर, आपने हर जगह जाकर आदरपूर्वक सबको इस विवाह में पधारने का निमंत्रण दे दिया। तत्पश्चात भगवान शिव के पास आकर उन्हें सारी जानकारी दे दी। तब भगवान शिव भी आदरपूर्वक सब देवताओं के पधारने की प्रतीक्षा करने लगे। भगवान शिव के सभी गण संपूर्ण दिशाओं में नाचने गाने लगे। सभी ओर उत्सव होने लगा। निमंत्रण पाकर अति प्रसन्नता से सज-धजकर भगवान श्रीहरि विष्णु भी श्री लक्ष्मी और अपने दलबल को साथ लेकर कैलाश पर्वत पर जा पहुंचे। वहां पधारकर उन्होंने भक्तिभाव से भगवान शिव को प्रणाम किया और प्रभु की आज्ञा लेकर अपना स्थान ग्रहण किया। तत्पश्चात में भी सपत्नीक अपने पुत्रों सहित भगवान शिव के विवाह में सम्मिलित होने के लिए पहुंचा। भगवान शिव को प्रणाम करके मैंने भी वहां आसन ग्रहण कर लिया। इसी प्रकार सब देवता, देवराज इंद्र आदि भी अपने-अपने गणों एवं परिवारों के साथ सुंदर वस्त्रों और बहुमूल्य आभूषणों से शोभायमान होकर वहां पहुंच गए। सिद्ध, चारण, गंधर्व, ऋषि, मुनि सब सहर्ष विवाह में सम्मिलित होने के लिए कैलाश पर पहुंच गए। अप्सराएं नृत्य करने लगीं और देव नारियां गीत गाने लगीं। त्रिलोकीनाथ भगवान शिव ने स्वयं आगे बढ़कर सभी अतिथियों का सहर्ष आदर-सत्कार किया। उस समय कैलाश पर्वत पर बहुत अनोखा और महान उत्सव होने लगा। सभी देवगण हर कार्य को कुशलता के साथ संपन्न कर रहे थे मानो उनका अपना ही कार्य हो। प्रसन्नतापूर्वक सातों मातृकाएं शिवजी को आभूषण पहनाने लगीं। लोकोचार रीतियां करके भगवान शिव की आज्ञा से श्रीविष्णु आदि सभी देवता, वरयात्रा अर्थात बारात ले जाने की तैयारी करने लगे।
सातों माताओं ने भगवान शिव का शृंगार किया। उनके मस्तक पर तीसरा नेत्र मुकुट बन गया। चंद्रकला का तिलक लगाया गया। उनके गले में पड़े दोनों सांपों को उन्होंने और ऊंचा कर लिया और वे इस प्रकार प्रतीत होने लगे मानो सुंदर कुण्डल हों। इसी प्रकार सभी अंगों पर सांप लिपट गए जो आभूषण की सी शोभा देने लगे। सारे अंगों पर चिता की भस्म रमा दी गई, वह चंदन के समान चमक उठी। वस्त्र के स्थान पर सिंह तथा हाथी की खाल को उन्होंने ओढ़ लिया। इस प्रकार शृंगार से सुशोभित होकर भगवान शिव दूल्हा बनकर तैयार हो गए। उनके मुखमंडल पर जो आभा सुर्शोभित हो रही थी, उसका वर्णन करना कठिन है। वे साक्षात ईश्वर हैं। तत्पश्चात समस्त देवता, यज्ञ, दानव, नाग, पक्षी, अप्सरा और महर्षिगण मिलकर भगवान शिव के पास गए और प्रसन्नतापूर्वक बोले- हे महादेव, महेश्वर जी! अब आप देवी पार्वती को ब्याह लेने के लिए हम लोगों के साथ चलिए और हम पर कृपा कीजिए। तत्पश्चात क्षीरसागर के स्वामी श्रीहरि विष्णु भगवान शिव को आदरपूर्वक नमस्कार कर बोले – हे देवाधिदेव! महादेव! भक्तवत्सल! आप सदैव ही अपने भक्तों के कार्यों को सिद्ध करते हैं। हे प्रभु! आप गिरिजानंदनी देवी पार्वती के साथ वेदोक्त रीति से विवाह करिए। आपके द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली विवाह रीति ही जगत में विवाह-रीति के रूप में विख्यात होगी। भगवन्! आप कुलधर्म के अनुसार मण्डप की स्थापना करके इस लोक में अपने यश का विस्तार कीजिए। भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर महादेव जी ने विधिपूर्वक सब कार्य करने के लिए मुझ (ब्रह्मा) से कहा। तब मैंने श्रेष्ठ मुनियों कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, गौतम, भागुरि गुरु, कण्व, बृहस्पति, शक्ति, जमदग्नि, पराशर, मार्कण्डेय, अगस्त्य, च्यवन, गर्ग, शिलापाक, अरुणपाल, अकृतश्रम, शिलाद, दधीचि, उपमन्यु, भरद्वाज, अकृतव्रण, पिप्पलाद, कुशिक, कौत्स तथा शिष्यों सहित व्यास आदि उपस्थित ऋषियों को बुलाकर भगवान शिव की प्रेरणा से विधिपूर्वक आभ्युदयिक कर्म कराए। सबने मिलकर भगवान शंकर की रक्षा विधान करके ऋग्वेद, यजुर्वेद द्वारा स्वस्तिवाचन किया। फिर सभी ऋषियों ने सहर्ष मंगल कार्य संपन्न कराए। तत्पश्चात ग्रहों एवं विघ्नों की शांति हेतु पूजन कराया। इन सब वैदिक और अलौकिक कर्मों को विधिपूर्वक संपन्न हुआ देखकर भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए। तब भगवान शिव हर्षपूर्वक देवताओं और ब्राह्मणों को साथ लेकर अपने निवास स्थान कैलाश पर्वत से बाहर आए। उस समय शिवजी ने सब देवताओं और ब्राह्मणों को आदरपूर्वक हाथ जोड़कर नमस्कार किया। चारों ओर गाजे-बाजे बजने लगे, सभी मंत्रमुग्ध होकर नृत्य करने लगे। वहां बहुत बड़ा उत्सव होने लगा।*