IUNNATI SHIV PURAN शिव पुराण  उनचासवां अध्याय : ब्रह्माजी का मोहित होना

शिव पुराण  उनचासवां अध्याय : ब्रह्माजी का मोहित होना

शिव पुराण 

उनचासवां अध्याय – श्री रूद्र संहिता (तृतीय खंड)

विषय:–ब्रह्माजी का मोहित होना

 ब्रह्माजी बोले- हे नारद! उसके उपरांत मेरी आज्ञा पाकर महादेव जी ने अग्नि की स्थापना कराई तथा अपनी प्राणवल्लभा पत्नी पार्वती को अपने आगे बैठाकर चारों वेद- ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद तथा सामवेद के मंत्रों द्वारा हवन कराकर उसमें आहुतियां दीं। उस समय पार्वती के भाई मैनाक ने उनके हाथों में खीलें दीं फिर लोक मर्यादा के अनुसार भगवान शिव और देवी पार्वती अग्नि के फेरे लेने लगे।

 उस समय मैं शिवजी की माया से मोहित हो गया। मेरी दृष्टि जैसे ही परम सुंदर दिव्यांगना देवी पार्वती के शुभ चरणों पर पड़ी मैं काम से पीड़ित हो गया। मुझे मन में बड़ी लज्जा का अनुभव हुआ। किसी की दृष्टि मेरे इन भावों पर पड़ जाए इस हेतु मैंने अपने मन के भावों को दबा लिया परंतु भगवान शिव तो सर्वव्यापी और सर्वेश्वर हैं। भला उनसे कुछ कैसे छिप सकता है। उनकी दृष्टि मुझ पर पड़ गई और उन्हें मेरे मन में उत्पन्न हुए बुरे विचार की जानकारी हो गई। भगवान शिव के क्रोध की कोई सीमा न रही। कुपित होकर शिवजी मुझे मारने हेतु आगे बढ़ने लगे। उन्हें क्रोधित देखकर मैं भय से कांपने लगा तथा वहां उपस्थित अन्य देवता भी डर गए। भगवान शिव के क्रोध की शांति के लिए सभी देवता एक स्वर में शिवजी से बोले- हे सदाशिव! आप दयालु और करुणानिधान हैं। आप तो सदा ही अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उन्हें उनकी इच्छित वस्तु प्रदान करते हैं। भगवन्, आप तो सत्चित् और आनंद स्वरूप हैं। प्रसन्न होकर मुक्ति पाने की इच्छा से मुनिजन आपके चरण कमलों का आश्रय ग्रहण करते हैं

 हे परमेश्वर! भला आपके तत्व को कौन जान सकता है। भगवन्, अपनी गलती के लिए ब्रह्माजी क्षमाप्रार्थी हैं। आप तो भक्तों के सदा वश में है। हम सब भक्तजन आपसे प्रार्थना करते हैं कि आप ब्रह्माजी की इस भूल को क्षमा कर दें और उन्हें निर्भय कर दें। इस प्रकार देवताओं द्वारा की गई स्तुति और क्षमा प्रार्थना के फलस्वरूप भगवान शिव ने ब्रह्माजी को निर्भय कर दिया। नारद, तब मैंने अपने उन भावों को सख्ती के साथ मन में ही दबा दिया।

फिर भी उन भावों के जन्म से हजारों बालखिल्य ऋषियों की उत्पत्ति हो गई, जो बड़े तेजस्वी थे। यह जानकर कि कहीं उन ऋषियों को देख शिवजी क्रोधित न हो जाएं, तुमने उन्हें गंधमादन पर्वत पर जाने का आदेश दे दिया। बालखिल्य ऋषियों को तुमने सूर्य भगवान की आराधना और तपस्या करने का आदेश प्रदान किया। तब वे बालखिल्य ऋषि तुरंत मुझे और भगवान शिव को प्रणाम करके गंधमादन पर्वत पर चले गए।

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