चाणक्य नीति
तृतीय अध्याय
श्लोक : १४
एकेनाअ्पि सुवृक्षेण पचष्पितेन सुगन्धिना।
वासितं तद्वनं सर्वं सुपुत्रेण कुलं तथा।।१४।।
भावार्थ – पुष्पों से लदे और उत्तम सुगन्ध से युक्त एक ही पेड़ से जिस तरह पूरा वन सुशोभित हो जाता है, उसी तरह उत्तम गुणों से युक्त एक ही संतान से पूरा कुल शोभायमान हो जाता