Category: SHREE-MAD BHAGWAT GEETA

श्रीमद् भगवत गीता​

श्रीमद् भगवत गीता ३ अध्याय – कर्म योगश्रीमद् भगवत गीता ३ अध्याय – कर्म योग

श्रीमद् भगवत गीता ३ अध्याय – कर्म योग४३ श्लोक   एवं बुद्धे: परं बुद्ध्वा संस्ताभ्यात्मानमात्मना | जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम् || ४३ | भावार्थ ( श्रीमद् भगवत गीता​ ) निष्कर्ष के रूप

श्रीमद् भगवत गीता

श्रीमद् भगवत गीता ३ अध्याय – कर्म योगश्रीमद् भगवत गीता ३ अध्याय – कर्म योग

श्रीमद् भगवत गीता ३ अध्याय – कर्म योग  ४१ श्लोक   तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ |  पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम् || ४१ ||  भावार्थ इसलिए हे भरतवंशियों में श्रेष्ठ! प्रारम्भ से ही

श्रीमद् भगवत गीता​

श्रीमद् भगवत गीताश्रीमद् भगवत गीता

श्रीमद् भगवत गीता ३ अध्याय – कर्म योग  ४० श्लोक इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते | एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम् || ४० ||  भावार्थ इन्द्रिय, मन और बुद्धि को कामना की प्रजनन भूमि कहा

श्रीमद् भगवत गीता

श्रीमद् भगवत गीताश्रीमद् भगवत गीता

श्रीमद् भगवत गीता ३ अध्याय – कर्म योग १३ श्लोक   देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा | तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति || १३ ||  भावार्थ ( श्रीमद् भगवत गीता )  जैसे देहधारी आत्मा