श्रीमद् भगवत गीता ३ अध्याय – कर्म योगश्रीमद् भगवत गीता ३ अध्याय – कर्म योग
श्रीमद् भगवत गीता ३ अध्याय – कर्म योग४३ श्लोक एवं बुद्धे: परं बुद्ध्वा संस्ताभ्यात्मानमात्मना | जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम् || ४३ | भावार्थ ( श्रीमद् भगवत गीता ) निष्कर्ष के रूप