IUNNATI SHIV PURAN शिव पुराण इक्यानवां अध्याय : रति की प्रार्थना पर कामदेव को जीवनदान

शिव पुराण इक्यानवां अध्याय : रति की प्रार्थना पर कामदेव को जीवनदान

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शिव पुराण 

 इक्यानवां अध्याय – श्री रूद्र संहिता (तृतीय खंड)

 विषय:–रति की प्रार्थना पर कामदेव को जीवनदान

ब्रह्माजी बोले- हे नारद जी! उस समय अनुकूल समय देखकर देवी रति भगवान शिव के निकट आकर बोलीं- हे दीनवत्सल भगवान शिव! आपको मैं प्रणाम करती हूं। देवी पार्वती का पाणिग्रहण करके आपने निश्चय ही लोकहित का कार्य किया है। देवी पार्वती को प्राणवल्लभा बनाने से आपके सौभाग्य में निश्चय ही वृद्धि हुई है। आपने तो पार्वती का वरण कर लिया है परंतु भगवन्

 मेरे पति कामदेव की क्या गलती थी? उन्होंने तो लोककल्याण वश सभी देवताओं की प्रार्थना मानकर आपके हृदय में पार्वती के प्रति आसक्ति पैदा करने हेतु ही कामबाणों का उपयोग किया था। उनका यह कार्य तो इस संसार को तारकासुर नामक भयानक और दुष्ट र दुष्ट असुर से मुक्ति दिलाने के लिए प्रेरित करना था। वे तो स्वार्थ से दूर थे? फिर क्यों आपने उन्हें अपनी क्रोधाग्नि से भस्म कर दिया?

हे देवाधिदेव महादेव जी! हे करुणानिधान! भक्तवत्सल! अपने मन में काम को जगाकर मेरे पति कामदेव को पुनर्जीवित कर मेरे वियोग के कष्ट को दूर करें। आप तो सब की पीड़ा जानते हैं। मेरी पीड़ा को समझकर मेरे दुख को दूर करने में मेरी मदद कीजिए। भगवन्, आज जब सबके हृदय में प्रसन्नता है तो मेरा मन क्यों दुखी हो? मैं अपने पति के बिना कब तक ऐसे ही रहूं? भगवन्, आप तो दीनों के दुख दूर करने वाले हैं।

 अब आप अपनी कही बात को सच कर दीजिए। भगवन् इस त्रिलोक में आप ही मेरे इस कष्ट और दुख को दूर कर सकते हैं। प्रभो! मुझ पर दया कीजिए और मुझे भी सुखी करके आनंद प्रदान कीजिए। भगवन्! अपने विवाह के शुभ अवसर पर मुझे भी मेरे पति से हमेशा के लिए मिलाकर मेरी विरह-वेदना को कम कीजिए। महादेव जी! मेरे पति कामदेव को जीवित कर मुझ दीन-दासी को कृतार्थ कीजिए।

ऐसा कहकर देवी रति ने अपने दुपट्टे की गांठ में बंधी अपने पति कामदेव के शरीर की भस्म को भगवान शिव के सामने रख दिया और जोर-जोर से रोते-रोते भगवान शिव शंकर से कामदेव को जीवित करने की प्रार्थना करने लगी। देवी रति को इस प्रकार रोते हुए देखकर वहां उपस्थित सरस्वती आदि देवियां भी रोने लगीं और सब भगवान शिव से कामदेव को जीवनदान देने की प्रार्थना करने लगीं।

 इस प्रकार देवी रति के बार-बार प्रार्थना करने और स्तुति करने पर भगवान शिव प्रसन्न हो गए और उन्होंने रति के कष्टों को दूर करने का निश्चय कर लिया। शूलपाणि भगवान शिव की अमृतमयी दिव्य दृष्टि पड़ते ही उस भस्म में से सुंदर पहले जैसा वेष और रूप धारण किए कामदेव प्रकट हो गए। अपने प्रिय पति कामदेव को पहले की भांति सुंदर और स्वस्थ पाकर देवी रति की प्रसन्नता की कोई सीमा न रही। वे कामदेव को देखकर बहुत प्रसन्न हुईं और उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर भगवान शिव को नमस्कार किया और र उनकी स्तुति करने लगीं।

दोनों पति-पत्नी कामदेव और रति बार-बार भगवान शिव के चरणों में गिरकर उनका धन्यवाद करके उनकी स्तुति करने लगे। उनकी इस प्रकार की गई स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान शिव बोले- हे काम और रति! तुम्हारी इस स्तुति से मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है। मैं बहुत प्रसन्न हूं। तुम जो चाहो मनोवांछित वस्तु मांग सकते हो। भगवान शिव के ये वचन सुनकर कामदेव को बहुत प्रसन्नता हुई। उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर और सिर झुकाकर कहा – हे भगवन्! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो पूर्व में मेरे द्वारा किए गए अपराध को क्षमा कर दीजिए और मुझे वरदान दीजिए कि आपके भक्तों से मेरा प्रेम हो और आपके चरणों में मेरी भक्ति हो।

 कामदेव के वचन सुनकर भगवान शंकर बहुत प्रसन्न हुए और बोले ‘तथास्तु’ जैसा तुम चाहते हो वैसा ही होगा। मैं तुम पर प्रसन्न हूं। तुम अपने मन से भय निकाल दो। अब तुम भगवान श्रीहरि विष्णु के पास जाओ। तत्पश्चात कामदेव ने भगवान शिव को नमस्कार किया और वहां से बाहर चले गए। उन्हें जीवित देखकर सभी देवता बहुत प्रसन्न हुए और बोले कि कामदेव आप धन्य हैं। महादेव जी ने आपको जीवनदान दे दिया।

 तब कामदेव को आशीर्वाद देकर विष्णु पुनः अपने स्थान पर बैठ गए। उधर, भगवान शिव ने अपने पास बैठी देवी पार्वती के साथ भोजन किया और अपने हाथों से उनका मुंह मीठा किया। तत्पश्चात शैलराज की आज्ञा लेकर शिवजी पुनः जनवासे में चले गए। जनवासे में पहुंचकर शिवजी ने मुझे, विष्णुजी और वहां उपस्थित सभी मुनिगणों को प्रणाम किया। तब सब देवता शिवजी की वंदना और अर्चना करने लगे। फिर मैंने, विष्णुजी और इंद्रादि ने शिव स्तुति की। सब ओर भगवान शिव की जय-जयकार होने लगी और मंगलमय वेद ध्वनि बजने लगीं। भगवान शिव की स्तुति करने के पश्चात उनसे विदा लेकर सभी देवता और ऋषि-मुनि अपने-अपने विश्राम स्थल की ओर चले गए।

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