चाणक्य नीति दैनिक अध्याय
।। अथ: चाणक्य सूत्रं प्रारभ्यते ।।【चाणक्य सूत्र】
चाणक्य सूत्र : २१३ ।। प्रज्ञाफलमैश्वर्यम् ।।
भावार्थ:-बुद्धि का ही फल ऐश्वर्य है।
संक्षिप्त वर्णन :-संसार में बुद्धिमान मनुष्य को ही सुख की प्राप्ति होती है। वस्तुतः बुद्धिमान व्यक्ति को ही संसार में श्रेष्ठ और बलवान् माना जाता है। शरीर से बलवान् होना प्रायः उतना लाभदायक नहीं होता जितना बुद्धिमान होना। संसार के सभी प्राणी खानपान, सोने, उठने, बैठने में एक समान हैं परंतु मनुष्य की बुद्धि ही उसे अन्य प्राणियों से अलग करती है और उसकी श्रेष्ठता सिद्ध करती है। बुद्धिमान व्यक्ति की ही इस संसार में पूजा होती है। उसे आदर और सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। ।213।
चाणक्य सूत्र : २१४ ।। दातव्यमपिबालिश: क्लेशेन परिदास्यति ॥
भावार्थ:-मूर्ख व्यक्ति दूसरों को दी जाने वाली वस्तु को देने में भी दुःख अनुभव करता है।
संक्षिप्त वर्णन :-संसार में अनेक वस्तुएं ऐसी हैं जो प्रकृति द्वारा मनुष्य को बिना किसी भेद-भाव के प्रदान की गई हैं। बुद्धिमान व्यक्ति तो दान के महत्त्व को समझते हैं और वह दान देना अपना कर्त्तव्य मानते हैं, परंतु मूर्ख व्यक्तियों को इस बात से क्लेश अनुभव होता है। सद्गृहस्थ व्यक्ति जहां दान देना अपना कर्त्तव्य मानता है वहां मूर्ख व्यक्ति छोटी-से छोटी वस्तु भी अपने से पृथक् करने में कष्ट अनुभव करता है। क्योंकि वह दान के महत्त्व को नहीं समझता। ।214।