शिव पुराण
ग्यारहवां अध्याय श्री रूद्र संहिता (पंचम खंड)
विषय :- भगवान शिव द्वारा देवताओं को वरदान
व्यासजी बोले- हे सनत्कुमार जी! आप परम शिवभक्त हैं और ब्रह्माजी के पुत्र हैं। आप मुझे अब यह बताइए कि जब त्रिपुर नष्ट हो गए तब देवताओं ने क्या किया? मय कहां चला गया? भगवन्! इन बातों के बारे में सविस्तार मुझे बताइए। व्यास जी का प्रश्न सुनकर सृष्टिकर्ता भगवान ब्रह्मा के पुत्र सनत्कुमार जी बोले- हे महर्षे!
जब भगवान शिव ने त्रिपुरों को उनके स्वामियों के साथ जलाकर भस्म कर दिया तब सभी देवता बहुत प्रसन्न हुए, क्योंकि उन्हें अपने संकट और भय से मुक्ति मिल गई थी। परंतु जब सब देवताओं ने त्रिलोकीनाथ भगवान शिव की ओर देखा तो अत्यंत भयभीत हो गए। उस समय भगवान शिव ने रौद्र रूप धारण कर रखा था। वे करोड़ों सूर्यों के तेज के समान प्रकाशित हो रहे थे। उनके दिव्य तेज से सारी दिशाएं आलोकित हो रही थीं। भगवान के इस रौद्र और प्रलयंकारी रूप को देखकर कोई भी उनसे कुछ कहने का साहस नहीं जुटा पाया। सब नत-मस्तक खड़े हो गए। यहां तक कि श्रीहरि और ब्रह्माजी भी शिवजी के इस रूप को देखकर आतंकित हो गए थे। कोई भी भगवान शिव के सम्मुख मुंह नहीं खोल पाया। देव सेना को इस प्रकार भयग्रस्त देखकर ऋषियों ने हाथ जोड़कर भगवान शिव को प्रणाम किया।
ब्रह्माजी, श्रीहरि विष्णु , देवराज इंद्र सहित सभी देवता और ऋषि-मुनि भक्तवत्सल कल्याणकारी भगवान शिव की स्तुति करने लगे। इस प्रकार सबको अपनी स्तुति में मग्न देखकर भगवान शिव का क्रोध शांत हो गया और वे पहले की भांति अपने सरल, सौम्य रूप में आ गए और बोले- हे ब्रह्माजी! हे विष्णो और सभी देवताओ ! मैं तुम्हारी स्तुति से बहुत प्रसन्न हूं। तुम अपनी इच्छानुसार वर मांगो। मैं तुम्हारी इच्छाओं को अवश्य ही पूरा करूंगा।
भगवान शिव के इन वचनों को सुनकर देवता बहुत प्रसन्न हुए और बोले- हे देवाधिदेव करुणानिधान भगवान शिव! यदि आप हम पर प्रसन्न हैं और हमें कोई वर प्रदान करना चाहते हैं तो प्रभु हमें यह वर दीजिए कि जब-जब हम पर कोई भी संकट आएगा आप हमारी सहायता करेंगे।
जब ब्रह्माजी, श्रीहरि विष्णुजी और देवताओं ने भगवान शिव से यह प्रार्थना की तब शिवजी ने प्रसन्नतापूर्वक कहा- तथास्तु अर्थात ऐसा ही होगा। ऐसा कहकर भगवान शिव ने देवताओं के अभीष्ट फल को उन्हें प्रदान कर दिया।