नवरात्रि पूजन विधि
22 मार्च 2023 बुधवार से नवरात्रि प्रारंभ । नवरात्रि के प्रत्येक दिन माँ भगवती के एक स्वरुप श्री शैलपुत्री, श्री ब्रह्मचारिणी, श्री चंद्रघंटा, श्री कुष्मांडा, श्री स्कंदमाता, श्री कात्यायनी, श्री कालरात्रि, श्री महागौरी, श्री सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है । यह क्रम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को प्रातःकाल शुरू होता है । प्रतिदिन जल्दी स्नान करके माँ भगवती का ध्यान तथा पूजन करना चाहिए । सर्वप्रथम कलश स्थापना की जाती है ।*
घट स्थापना शुभ मुहूर्त:
मार्च 22 सुबह 06:42 से 07:55 तक*
*अवधि – 01 घण्टा 13 मिनट्स*
सामग्री
* जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र*
* जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ की हुई मिटटी*
* पात्र में बोने के लिए जौ*
* घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश (“हैमो वा राजतस्ताम्रो मृण्मयो वापि ह्यव्रणः” अर्थात ‘कलश’ सोने, चांदी, तांबे या मिट्टी का छेद रहित और सुदृढ़ उत्तम माना गया है । वह मङ्गलकार्योंमें मङ्गलकारी होता है )*
* कलश में भरने के लिए शुद्ध जल, गंगाजल*
* मौली (Sacred Thread)*
* इत्र*
* साबुत सुपारी*
* दूर्वा*
* कलश में रखने के लिए कुछ सिक्के*
* पंचरत्न*
* अशोक या आम के 5 पत्ते*
* कलश ढकने के लिए ढक्कन*
* ढक्कन में रखने के लिए बिना टूटे चावल*
* पानी वाला नारियल*
* नारियल पर लपेटने के लिए लाल कपडा*
* फूल माला*
विधि
* सबसे पहले जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र लें । इस पात्र में मिट्टी की एक परत बिछाएं । अब एक परत जौ की बिछाएं । इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं । अब फिर एक परत जौ की बिछाएं । जौ के बीच चारों तरफ बिछाएं ताकि जौ कलश के नीचे न दबे। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं । अब कलश के कंठ पर मौली बाँध दें। कलश के ऊपर रोली से ॐ और स्वास्तिक लिखें । अब कलश में शुद्ध जल, गंगाजल कंठ तक भर दें । कलश में साबुत सुपारी, दूर्वा, फूल डालें। कलश में थोडा सा इत्र डाल दें । कलश में पंचरत्न डालें । कलश में कुछ सिक्के रख दें । कलश में अशोक या आम के पांच पत्ते रख दें । अब कलश का मुख ढक्कन से बंद कर दें। ढक्कन में चावल भर दें ।*
नारियल पर लाल कपडा लपेट कर मौली लपेट दें । अब नारियल को कलश पर रखें। नारियल का मुख नीचे की तरफ रखने से शत्रु में वृद्धि होती है । नारियल का मुख ऊपर की तरफ रखने से रोग बढ़ते हैं, जबकि पूर्व की तरफ नारियल का मुख रखने से धन का विनाश होता है । इसलिए नारियल की स्थापना सदैव इस प्रकार करनी चाहिए कि उसका मुख साधक की तरफ रहे । ध्यान रहे कि नारियल का मुख उस सिरे पर होता है, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है ।*
अब कलश को उठाकर जौ के पात्र में बीचो बीच रख दें । अब कलश में सभी देवी देवताओं का आवाहन करें। “हे सभी देवी देवता और माँ दुर्गा आप सभी नौ दिनों के लिए इसमें पधारें ।” अब दीपक जलाकर कलश का पूजन करें। धूपबत्ती कलश को दिखाएं । कलश को माला अर्पित करें। कलश को फल मिठाई अर्पित करें। कलश को इत्र समर्पित करें । कलश स्थापना के बाद माँ दुर्गा की चौकी स्थापित की जाती है ।*
नवरात्रि के प्रथम दिन एक लकड़ी की चौकी की स्थापना करनी चाहिए । इसको गंगाजल से पवित्र करके इसके ऊपर सुन्दर लाल वस्त्र बिछाना चाहिए । इसको कलश के दायीं ओर रखना चाहिए। उसके बाद माँ भगवती की धातु की मूर्ति अथवा नवदुर्गा का फ्रेम किया हुआ फोटो स्थापित करना चाहिए । मूर्ति के अभाव में नवार्णमन्त्र युक्त यन्त्र को स्थापित करें । माँ दुर्गा को लाल चुनरी उड़ानी चाहिए । माँ दुर्गा से प्रार्थना करें “हे माँ दुर्गा आप नौ दिन के लिए इस चौकी में विराजिये ।” उसके बाद सबसे पहले माँ को दीपक दिखाइए । उसके बाद धूप, फूलमाला, इत्र समर्पित करें । फल, मिठाई अर्पित करें ।*
नवरात्रि में नौ दिन मां भगवती का व्रत रखने का तथा प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करने का विशेष महत्व है । हर एक मनोकामना पूरी हो जाती है । सभी कष्टों से छुटकारा दिलाता है ।*
नवरात्रि के प्रथम दिन ही अखंड ज्योत जलाई जाती है जो नौ दिन तक जलती रहती है । दीपक के नीचे “चावल” रखने से माँ लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है तथा “सप्तधान्य” रखने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते है ।*
माता की पूजा “लाल रंग के कम्बल” के आसन पर बैठकर करना उत्तम माना गया है ।*
नवरात्रि के प्रतिदिन माता रानी को फूलों का हार चढ़ाना चाहिए। प्रतिदिन घी का दीपक (माता के पूजन हेतु सोने, चाँदी, कांसे के दीपक का उपयोग उत्तम होता है) जलाकर माँ भगवती को मिष्ठान का भोग लगाना चाहिए । मान भगवती को इत्र/अत्तर विशेष प्रिय है ।*
नवरात्रि के प्रतिदिन कंडे की धुनी जलाकर उसमें घी, हवन सामग्री, बताशा, लौंग का जोड़ा, पान, सुपारी, कर्पूर, गूगल, इलायची, किसमिस, कमलगट्टा जरूर अर्पित करना चाहिए ।*
*लक्ष्मी प्राप्ति के लिए नवरात्रि में पान और गुलाब की ७ पंखुरियां रखें तथा मां भगवती को अर्पित कर दें ।*
प्रतिपदा तिथि (नवरात्र के पहले दिन) पर माता को घी का ।भोग लगाएं ।इससे रोगी को कष्टों से मुक्ति मिलती है तथा शरीर निरोगी होता है । चैत्र नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि पर मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है ।*
प्रतिदिन कन्याओं का विशेष पूजन किया जाता है। श्रीमद्देवीभागवत पुराण के अनुसार “एकैकां पूजयेत् कन्यामेकवृद्ध्या तथैव च। द्विगुणं त्रिगुणं वापि प्रत्येकं नवकन्तु वा॥” अर्थात नित्य ही एक कुमारी का पूजन करें अथवा प्रतिदिन एक-एक-कुमारी की संख्या के वृद्धिक्रम से पूजन करें अथवा प्रतिदिन दुगुने-तिगुने के वृद्धिक्रम से और या तो प्रत्येक दिन नौ कुमारी कन्याओं का पूजन करें ।*
यदि कोई व्यक्ति नवरात्रि पर्यन्त प्रतिदिन पूजा करने में असमर्थ हैं तो उसे अष्टमी तिथि को विशेष रूप से अवश्य पूजा करनी चाहिए । प्राचीन काल में दक्ष के यज्ञ का विध्वंश करने वाली महाभयानक भगवती भद्रकाली करोङों योगिनियों सहित अष्टमी तिथि को ही प्रकट हुई थीं ।*