*~ वैदिक पंचांग ~*
*दिनांक – 06 मार्च 2023*
*दिन – सोमवार*
*विक्रम संवत – 2079*
*शक संवत -1944*
*अयन – उत्तरायण*
*ऋतु – वसंत ॠतु*
*मास – फाल्गुन*
*पक्ष – शुक्ल*
*तिथि – चतुर्दशी शाम 04:17 तक तत्पश्चात पूर्णिमा*
*नक्षत्र – मघा 07 मार्च रात्रि 12:05 तक तत्पश्चात पूर्वाफाल्गुनी*
*योग – सुकर्मा रात्रि 08:55 तक तत्पश्चात धृति*
*राहुकाल – सुबह 08:24 से सुबह 09:53 तक*
* सूर्योदय- 06:56*
*सूर्यास्त – 18:43*
*दिशाशूल – पूर्व दिशा में*
*व्रत पर्व विवरण – होली पूर्णिमा,हुताशनी पूर्णिमा,होलिका दहन,होलाष्टक समाप्त*
*विशेष – चतुर्दशी और व्रत के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)*
~*वैदिक पंचांग* ~
*होली कैसे मनायें*
*होली भारतीय संस्कृति की पहचान का एक पुनीत पर्व है, भेदभाव मिटाकर पारस्परिक प्रेम व सदभाव प्रकट करने का एक अवसर है |अपने दुर्गुणों तथा कुसंस्कारों की आहुति देने का एक यज्ञ है तथा परस्पर छुपे हुए प्रभुत्व को, आनंद को, सहजता को, निरहंकारिता और सरल सहजता के सुख को उभारने का उत्सव है |*
➡ *यह रंगोत्सव हमारे पूर्वजों की दूरदर्शिता है जो अनेक विषमताओं के बीच भी समाज में एकत्व का संचार करता है | होली के रंग-बिरंगे रंगों की बौछार जहाँ मन में एक सुखद अनुभूति प्रकट कराती है वहीं यदि सावधानी, संयम तथा विवेक न रक्खा जाये तो ये ही रंग दुखद भी हो जाते हैं | अतः इस पर्व पर कुछ सावधानियाँ रखना भी अत्यंत आवश्यक है |*
➡ *प्राचीन समय में लोग पलाश के फूलों से बने रंग अथवा अबीर-गुलाल, कुम -कुम- हल्दी से होली खेलते थे |किन्तु वर्त्तमान समय में रासायनिक तत्त्वों से बने रंगोंका उपयोग किया जाता है | ये रंग त्वचा पे चक्तों के रूप में जम जाते हैं | अतः ऐसे रंगों से बचना चाहिये | यदि किसी ने आप पर ऐसा रंग लगा दिया हो तो तुरन्त ही बेसन, आटा, दूध, हल्दी व तेल के मिश्रण से बना उबटन रंगे हुए अंगों पर लगाकर रंग को धो डालना चाहिये |यदि उबटन करने से पूर्व उस स्थान को निंबू से रगड़कर साफ कर लिया जाए तो रंग छूटने में और अधिक सुगमता आ जाती है |*
➡ *रंग खेलने से पहले अपने शरीर को नारियल अथवा सरसों के तेल से अच्छी प्रकार मल लेना चाहिए | ताकि तेलयुक्त त्वचा पर रंग का दुष्प्रभाव न पड़े और साबुन लगाने मात्र से ही शरीर पर से रंग छूट जाये | रंग आंखों में या मुँह में न जाये इसकी विशेष सावधानी रखनी चाहिए | इससे आँखों तथा फेफड़ों को नुकसान हो सकता है |*
➡ *जो लोग कीचड़ व पशुओं के मलमूत्र से होली खेलते हैं वे स्वयं तो अपवित्र बनते ही हैं दूसरों को भी अपवित्र करने का पाप करते हैं | अतः ऐसे दुष्ट कार्य करने वालों से दूर ही रहें तो अच्छा है |*
➡ *वर्त्तमान समय में होली के दिन शराब अथवा भंग पीने की कुप्रथा है | नशे से चूर व्यक्ति विवेकहीन होकर घटिया से घटिया कुकृत्य कर बैठते हैं | अतः नशीले पदार्थ से तथा नशा करने वाले व्यक्तियों से सावधान रहना चाहिये |आजकल सर्वत्र उन्न्मुक्तता का दौर चल पड़ा है | पाश्चात्य जगत के अंधानुकरण में भारतीय समाज अपने भले बुरे का विवेक भी खोता चला जा रहा है | जो साधक है, संस्कृति का आदर करने वाले हैं, ईश्वर व गुरु में श्रद्धा रखते हैं ऐसे लोगो में शिष्टता व संयम विशेषरूप से होना चाहिये | पुरुष सिर्फ पुरुषों से तथा स्त्रियाँ सिर्फ स्त्रियों के संग ही होली मनायें | स्त्रियाँ यदि अपने घर में ही होली मनायें तो अच्छा है ताकि दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों कि कुदृष्टि से बच सकें |*
➡ *होली मात्र लकड़ी के ढ़ेर जलाने का त्योहार नहीँ है |यह तो चित्त की दुर्बलताओं को दूर करनेका, मन की मलिन वासनाओं को जलाने का पवित्र दिन है | अपने दुर्गुणों, व्यसनों व बुराईओं को जलाने का पर्व है होली अच्छाईयाँ ग्रहण करने का पर्व है होली समाज में स्नेह का संदेश फैलाने का पर्व है होली
➡ *आज के दिन से विलासी वासनाओं का त्याग करके परमात्म प्रेम, सदभावना, सहानुभूति, इष्टनिष्ठा, जपनिष्ठा, स्मरणनिष्ठा, सत्संगनिष्ठा, स्वधर्म पालन , करुणा दया आदि दैवी गुणों का अपने जीवन में विकास करना चाहिये | भक्त प्रह्लाद जैसी दृढ़ ईश्वर निष्ठा, प्रभुप्रेम, सहनशीलता, व समता का आह्वान करना चाहिये |*
➡ *सत्य, शान्ति, प्रेम, दृढ़ता की विजय होती है इसकी याद दिलाता है आज का दिन | हिरण्यकश्यपु रूपी आसुरी वृत्ति तथा होलिका रूपी कपट की पराजय का दिन है होली, यह पवित्र पर्व परमात्मा में दृढ़ निष्ठावान के आगे प्रकृति द्वारा अपने नियमों को बदल देने की याद दिलाता है | मानव को भक्त प्रह्लाद की तरह विघ्न बाधाओं के बीच भी भगवदनिष्ठा टिकाए रखकर संसार सागर से पार होने का संदेश देने वाला पर्व है ‘होली’ !*
*लोक कल्याण सेतु – मार्च 2000 से*
*~ वैदिक पंचांग ~*