IUNNATI SHIV PURAN शिव पुराण : चौथा अध्याय – श्री रुद्र संहिता (पंचम खंड)

शिव पुराण : चौथा अध्याय – श्री रुद्र संहिता (पंचम खंड)

शिव पुराण : चौथा अध्याय – श्री रुद्र संहिता (पंचम खंड) post thumbnail image

शिव पुराण

चौथा अध्याय - श्री रुद्र संहिता (पंचम खंड) ( शिव )

विषय:- नास्तिक शास्त्र का प्रादुर्भाव

ब्रह्माजी नारद से बोले- तब भगवान श्रीहरि विष्णु ने अपनी आत्मा के तेज से अत्यंत तेजस्वी एक मायावीर पुरुष प्रकट किया। उसका सिर मुंडा हुआ था। उसने अत्यंत गंदे वस्त्र पहने हुए थे। उसके एक हाथ में लकड़ी का एक कटोरा तथा दूसरे हाथ में झाडू थी।
 
उसने अपने मुख पर वस्त्र लपेट रखा था। व्याकुल वाणी में उसने श्रीहरि को प्रणाम किया और पूछा- हे प्रभु! मेरी उत्पत्ति का क्या प्रयोजन है? भगवन् मैं कौन हूं? 

तब श्रीहरि विष्णु ने उत्तर दिया- हे वत्स! तुम मेरे शरीर से ही उत्पन्न हुए हो। इसलिए तुम ‘अरिह’ नाम से जाने जाओगे।
 
तुम्हें मैंने एक विशेष कार्य के लिए उत्पन्न किया है। तुम बड़े मायावी हो। तुम्हें एक ऐसे शास्त्र की रचना करनी है जिसमें सोलह हजार श्लोक होंगे। जिसमें वर्णाश्रम धर्म की जानकारी होगी तथा जिसमें अपभ्रंश शब्दों व कर्म-विवाह की भी व्याख्या की गई होगी।
 
विष्णुजी के इन वचनों को सुनकर अरिह ने उन्हें प्रणाम किया और बोला कि मेरे लिए अब क्या आज्ञा है? तब श्रीहरि ने उसे माया से रचित वह अद्भुत शास्त्र पढ़ाया जिसका मूल यह था कि स्वर्ग और नरक सब यहीं हैं।

 उनका अलग से कोई भी अस्तित्व नहीं है।
 
तब विष्णु ने अरिह को आज्ञा दी कि वह सब दैत्यों को जाकर शास्त्र पढ़ाए और उनकी बुद्धि का नाश करे। इस प्रकार यह शास्त्र पढ़कर त्रिपुरों में तमोगुण की वृद्धि होगी, जो उनके विनाश का कारण सिद्ध होगी।
 
मेरी कृपा से तुम्हारे इस धर्म का विस्तार होगा। तत्पश्चात तुम मरुस्थल में निवास करना। तुम्हारा कार्य कलयुग आने पर ही पुनः आरंभ होगा।
ऐसा कहकर श्रीहरि विष्णु अंतर्धान हो गए। तब अरिह ने भगवान विष्णु की आज्ञा के अनुसार अपने अनेक शिष्य बनाए और उन्हें उसी मायामय शास्त्र की शिक्षा दी।
 
विशेष रूप से उनके चार शिष्य बने जिनको उन्होंने कृषि, पत्ति, कीर्य और उपाध्याय नाम प्रदान किया।
 
वे चारों शिष्य अपने गुरु के समान ही आचरण करने वाले थे। उनका एक ही धर्म था- पाखंड। वे नाक पर कपड़ा लपेटे गंदे वस्त्र धारण करके इधर-उधर घूमते रहते थे। एक दिन अरिह अपने चारों शिष्यों को अपने साथ लेकर त्रिपुर नगर में चल दिए।
 
वहां पहुंचकर उन्होंने अपनी माया फैलानी आरंभ की, परंतु भगवान शिव की कृपा से उस त्रिपुरी में उनकी माया का प्रभाव नहीं हो रहा था। तब उन्होंने व्याकुल होकर भगवान विष्णु का स्मरण किया। भगवान विष्णु ने अलौकिक गति से सभी बातें जान लीं।
 
भगवान शिव का ध्यान करते हुए विष्णुजी ने हे नारद तब तुम्हारा स्मरण किया। अपने स्वामी के स्मरण करते ही तुम तत्काल उनकी सेवा में उपस्थित हो गए। उन्हें प्रणाम करके तुमने याद करने का कारण पूछा। तत्पश्चात तुम मरुस्थल में निवास करना। तुम्हारा कार्य कलयुग आने पर ही पुनः आरंभ होगा।
 
तब श्रीहरि ने तुम्हें आज्ञा प्रदान की कि तुम अरिह और उसके शिष्यों को साथ लेकर त्रिपुर नगरी में प्रवेश करो और वहां के निवासियों को मोहित करके उन्हें माया से ओत-प्रोत उस शास्त्र की शिक्षा प्रदान करो। अपने आराध्य
 
भगवान श्रीहरि की आज्ञा शिरोधार्य कर तुम उन पाखण्डी ब्राह्मणों को साथ लेकर त्रिपुर नगरी की ओर चल दिए।
 
वहां जाकर तुम तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली नामक त्रिपुर स्वामियों से मिले तथा उनसे उस मायामय शास्त्र की प्रशंसा करने लगे। तुमने उन्हें बताया कि तुम इसी शास्त्र से शिक्षा ग्रहण करते हो।
 
यह बात जानकर उन त्रिपुर स्वामियों को बड़ा आश्चर्य हुआ और वे उस मायामय शास्त्र की माया से मोहित होने लगे।
 
तब उन्होंने ‘अरिह’ को अपना गुरु बना लिया और उनसे दीक्षा लेने लगे। यह देखकर त्रिपुरों के अन्य निवासी भी उन मायावी शिष्यों एवं उनके गुरु से शिक्षा ग्रहण करने लगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Post

HAR HAR MAHADEV

भगवान शिव की अर्ध परिक्रमा क्यों ?भगवान शिव की अर्ध परिक्रमा क्यों ?

भगवान शिव की अर्ध परिक्रमा क्यों ? शिवजी की आधी परिक्रमा करने का विधान है। वह इसलिए की शिव के सोमसूत्र को लांघा नहीं जाता है। जब व्यक्ति आधी परिक्रमा

भगवान शिव और शंकर

भगवान शिव और शंकर में क्या भेद है?भगवान शिव और शंकर में क्या भेद है?

भगवान शिव से जुड़ी जानकारी सदाशिव जी ने सृष्टि की स्थापना, पालना और विलय के लिए क्रमश: ब्रह्मा, विष्णु और महेश नामक तीन सूक्ष्म देवताओं की रचना की। इस तरह

शिव पुराण  उनचासवां अध्याय : ब्रह्माजी का मोहित होनाशिव पुराण  उनचासवां अध्याय : ब्रह्माजी का मोहित होना

शिव पुराण  उनचासवां अध्याय – श्री रूद्र संहिता (तृतीय खंड) विषय:–ब्रह्माजी का मोहित होना  ब्रह्माजी बोले- हे नारद! उसके उपरांत मेरी आज्ञा पाकर महादेव जी ने अग्नि की स्थापना कराई