शिव पुराण
तीसरा अध्याय - श्री रूद्र संहिता(पंचम खंड) ( शिव )
विषय-भगवान शिव का देवताओं को विष्णु के पास भेजना
ब्रह्माजी बोले- हे नारद! इस प्रकार सब देवताओं ने त्रिलोकीनाथ भगवान शिव को उन तीनों तारकपुत्रों के आतंक के विषय में सब कुछबता दिया। तब सारी बातें सुनकर भगवान शिव बोले- हे देवताओ! मैंने तुम्हारे कष्टों को जान लिया है।
मैं जानता हूं कि तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ने तुम्हें बहुत परेशान किया हुआ है परंतु फिर भी ये तीनों पुण्य कार्यों में लगे हुए हैं। वे तीनों मेरे भक्त हैं और सदा मेरै ध्यान में निमग्न रहते हैं। भला में अपने भक्तों को कैसे मार सकता हूं।
वे तीनों तारकपुत्र पुण्य संपन्न हैं। वे प्रबल होने के साथ- साथ भक्तिभावना भी रखते हैं। जब तक उनका पुण्य संचित है और वे मेरी आराधना करते रहेंगे, मेरे लिए उन्हें मारना असंभव है क्योंकि स्वयं ब्रह्माजी के अनुसार मित्रद्रोह से बढ़कर कोई भी पाप नहीं है।
जब वे तीनों असुर नियमपूर्वक मेरी पूजा-आराधना करते हैं, तो में क्यों बिना किसी ठोस कारण से उनका वध करूं? हे देवताओ। इस समय में तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर सकता। अतः तुम सब श्रीहरि विष्णु की शरण में जाओ। अब वे ही तुम्हारा उद्धार करेंगे।
भगवान शिव की आज्ञा पाकर सभी देवताओं ने उन्हें पुनः हाथ जोड़कर प्रणाम किया और श्रीहरि विष्णु से मिलने के लिए उनके निवास बैकुंठ लोक की ओर चल दिए। उन्होंने अपने साथ मुझ ब्रह्मा को भी ले लिया।
बैकुंठ लोक पहुंचकर सब देवताओं ने भक्तिपूर्वक श्रीहरि को प्रणाम किया और उन्हें भगवान शिव द्वारा कही गई सब बातों से अवगत कराया। देवताओं की बातें सुनकर भगवान विष्णु बोले-
हे देवताओ! यह बात सत्य है कि जहां सनातन धर्म और भक्तिभावना हो, वहां ऐसा करना उचित नहीं होता। तब देवता पूछने लगे कि प्रभु हम क्या करें?
हमारा दुख कैसे दूर होगा?
प्रभु! आप शीघ्र ही उन तारकपुत्रों के वध का कोई उपाय कीजिए अन्यथा हम सभी देवता अकाल ही मृत्यु का ग्रास बन जाएंगे। भगवन्! आप ऐसा उपाय कीजिए, जिससे वे तीनों असुर सनातन धर्म से विमुख होकर अनाचार का रास्ता अपना लें। उनके वैदिक धर्म का नाश हो जाए और वे अपनी इंद्रियों के वश में हो जाएं।
वे दुराचारी हो जाएं तथा उनके सभी शुभ आचरण समाप्त हो जाएं। तब देवताओं की इस प्रार्थना को सुनकर भगवान श्रीहरि विष्णु एक पल को सोच में डूब गए। तत्पश्चात बोले- तारकपुत्र तो स्वयं भगवान शिव के भक्त हैं परंतु फिर भी जब तुम सब मेरी शरण में आए हो तो मैं तुम्हें निराश नहीं करूंगा।
तुम्हारी सहायता अवश्य ही करूंगा। तब श्रीहरि विष्णु ने मन ही मन यज्ञों का स्मरण किया। उनका स्मरण होते ही यज्ञगण तुरंत वहां उपस्थित हो गए।
वहां श्रीहरि को नमस्कार करके उन्होंने पूछा कि प्रभु! आपने हमें यहां क्यों बुलाया है? तब श्रीहरि मुस्कुराए और बोले कि हम तुम्हारी सहायता की आवश्यकता है।
इसलिए हमने तुम्हारा स्मरण किया है। तब वे देवराज इंद्र से बोले कि हे देवराज! आप त्रिलोक की विभूति के लिए यज्ञ करें। यज्ञ के द्वारा ही तारकपुत्रों के तीनों पुरों (नगरों) का विनाश संभव है।
भगवान श्रीहरि विष्णु के ये वचन सुनकर सभी देवताओं ने आदरपूर्वक विष्णुजी का धन्यवाद किया और उन्हें प्रणाम करने के पश्चात यज्ञ के ईश्वर की स्तुति करने लगे। तत्पश्चात उन्होंने बहुत विशाल यज्ञ का आयोजन किया।
सविधि उन्होंने उत्तम यज्ञ भक्ति भावना से आरंभ किया। यज्ञ अग्नि प्रज्वलित हुई।
सविधि उन्होंने उत्तम यज्ञ भक्ति भावना से आरंभ किया। यज्ञ अग्नि प्रज्वलित हुई।
यज्ञ पूर्ण होने पर उस यज्ञ कुंड से शूल शक्तिधारी विशालकाय हजारों भूतों का समुदाय निकल पड़ा। तत्पश्चात अनेक रूपों से युक्त नाना वेषधारी, कालाग्नि रुद्र के समान तथा काल सूर्य के समान प्रकट हुए उन भूतों ने भगवान विष्णु को नमस्कार किया।
उन भूतगणों को आज्ञा देते हुए विष्णुजी बोले-
हे भूतगणो! देवकार्य को पूरा करने के लिए तुम जाकर त्रिपुरों को नष्ट करो। विष्णुजी की आज्ञा सुनकर वे भूतगण दैत्यों के उस महासुंदर नगर त्रिपुर की ओर चल दिए।
जब उन्होंने त्रिपुर नगरी में घुसना चाहा तो वहां के तेज से वे भस्म हो गए। जो भूतगण बचे वे लौटकर भगवान विष्णु के पास वापस आ गए तथा उन्होंने श्रीहरि को इस बात की सूचना दी।जब भगवान विष्णु को इस प्रकार भूतगणों के नगरी के तेज से जलने की जानकारी हुई तो वे अत्यंत चिंतित हो गए।
तब उन्होंने देवताओं को समझाया कि वे अपनी चिंता त्यागकर अपने-अपने लोकों को जाएं। मैं इस संबंध में विचार करके आपके लाभ के लिए यथासंभव कार्य करूंगा।
मैं तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली नामक तीनों असुरों को शिवभक्ति से विमुख करने का प्रयास करता हूं,
तभी उन पर विजय पाना संभव होगा। तब श्रीहरि को प्रणाम करके सभी देवता अपने-अपने लोकों को वापस लौट गए।