~ आज का हिन्दू पंचांग ~*
*दिनांक – 09 मार्च 2023*
*दिन – गुरुवार*
*विक्रम संवत् – 2079*
*शक संवत् – 1944*
*अयन – उत्तरायण*
*ऋतु – वसंत*
*मास – चैत्र*
*पक्ष – कृष्ण*
*तिथि – द्वितीया रात्रि 08:54 तक तत्पश्चात तृतीया*
*नक्षत्र – हस्त 10 मार्च सुबह 05:57 तक तत्पश्चात चित्रा*
*योग – गण्ड रात्रि 09:08 तक तत्पश्चात वृद्धि*
*राहु काल – दोपहर 02:19 से 03:48 तक*
*सूर्योदय – 06:55*
*सूर्यास्त – 06:46*
*दिशा शूल – दक्षिण दिशा में*
*ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 05:17 से 06:06 तक*
*निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:26 से 01:14 तक*
*व्रत पर्व विवरण – संत तुकारामजी द्वितीया*
*विशेष – द्वितीया को बृहती (छोटा बैंगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)*
*स्वस्तिक का महत्त्व क्यों ?*
*स्वस्तिक अत्यंत प्राचीनकाल से भारतीय संस्कृति में मंगल-प्रतीक माना जाता रहा है । इसीलिए प्रत्येक शुभ और कल्याणकारी कार्य में सर्वप्रथम स्वस्तिक का चिह्न अंकित करने का आदिकाल से ही नियम है ।*
*स्वस्तिक शब्द मूलभूत ‘सु’ और ‘अस्’ धातु से बना है । ‘सु’ का अर्थ है – अच्छा, कल्याणकारी, मंगलमय । ‘अस्’ का अर्थ है – अस्तित्व, सत्ता। तो स्वस्तिक माने कल्याण की सत्ता, मांगल्य का अस्तित्व ।*
*स्वस्तिक शांति, समृद्धि एवं सौभाग्य का प्रतीक है । सनातन संस्कृति की परम्परा के अनुसार पूजन के अवसरों पर, दीपावली पर्व पर, बहीखाता पूजन में तथा विवाह, नवजात शिशु की छठी तथा अन्य शुभ प्रसंगों में व घर तथा मंदिरों के प्रवेशद्वार पर स्वस्तिक का चिह्न कुमकुम से बनाया जाता है और प्रार्थना की जाती है कि ‘हे प्रभु ! हमारा कार्य निर्विघ्न सफल हो और हमारे घर में जो अन्न, वस्त्र, वैभव आदि आयें वे पवित्र हों ।’*
*किसी भी मंगल कार्य के प्रारम्भ में यह स्वस्ति मंत्र बोला जाता है :*
*स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः*
*स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।*
*स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः*
*स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥*
*ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।*
*‘महान कीर्तिवाले इन्द्रदेव ! हमारा कल्याण कीजिये, विश्व के ज्ञानस्वरूप पूषादेव (सूर्यदेव) ! हमारा कल्याण कीजिये, जिनका हथियार अटूट है ऐसे गरुड़देव ! हमारा मंगल कीजिये, बृहस्पतिजी ! हमारे घर में कल्याण की प्रतिष्ठा कीजिये ।’ (यजुर्वेद : २५.१९)*
*स्वस्तिक का आकृति विज्ञान स्वस्तिक हिन्दुओं का प्राचीन धर्म-प्रतीक है । यह आकृति ऋषि-मुनियों ने अति प्राचीनकाल में निर्मित की थी। एकमेव अद्वितीय ब्रह्म ही विश्वरूप में फैला है यह बात स्वस्तिक की खड़ी और आड़ी रेखाएँ समझाती हैं । स्वस्तिक की खड़ी रेखा ज्योतिर्लिंग का सूचन करती है और आड़ी रेखा विश्व का विस्तार बताती है । स्वस्तिक की चार भुजाएँ यानी भगवान श्रीविष्णु के चार हाथ । भगवान विष्णु अपने चार हाथों से दिशाओं का पालन करते हैं । देवताओं की शक्ति और मनुष्य की मंगलमय कामनाएँ. – इन दोनों के संयुक्त सामर्थ्य का प्रतीक यानी ‘स्वस्तिक’ !*
* सामुद्रिक शास्त्रों के अनुसार भी स्वस्तिक एक मांगलिक चिह्न है। भगवान श्रीराम व श्रीकृष्ण के चरणों में भी स्वस्तिक चिह्न अंकित था ।*
* ब्रह्मवेत्ता संत पूज्य बापूजी अपने सत्संगों में बताते हैं कि “स्वस्तिक समृद्धि व अच्छे भावी का सूचक है । इसके दर्शन से जीवनशक्ति बढ़ती है । स्वस्तिक के चित्र को पलकें गिराये बिना एकटक निहारते हुए त्राटक का अभ्यास करके जीवनशक्ति का विकास किया जा सकता है । आपके घर की दीवारों पर स्वस्तिक का चिह्न अथवा ॐ का चित्र लगा दीजिये । उसको देखने से भी आपकी आध्यात्मिक आभा (aura) बढ़ेगी और घर में सात्त्विकता बनी रहेगी ।”*
* पारिवारिक कलहनाशक प्रयोग *
* पति-पत्नी में झगड़ा हो गया हो और उसका शमन करना हो तो पति-पत्नी दोनों पार्वतीजी को तिलक करके उनकी ओर एकटक देखें तथा प्रार्थना करें । अगर पति पत्नी को निकाल देना चाहता है तो पत्नी यह प्रयोग करें । इससे झगड़ा शांत हो जायेगा ।*
* ऋषि प्रसाद – जनवरी २०२१ से*
*दही कैसी खाना ?*
* दही खट्टा दुश्मन को भी नहीं खिलाना और दही खाने से तो नाड़ियों में blockage होता है बड़ी उम्र में; दही को मथ के लस्सी बनाओ फिर मक्खन सब खा लो; लस्सी पी सकते हैं, दही नहीं, और दही खट्टा तो बहुत नुकसान करता है ।*