आज के विज्ञान से बहुत आगे थे हमारे पूर्वज
श्राद्ध का वैज्ञानिक महत्व :
हमारे पुर्वज पितृपक्ष मे कौवों के लिए खीर बनाने को कहते थे। पीपल और बरगद को सनातन धर्म मे पूर्वजों की संज्ञा दी गई है। बरगद या पीपल की कलम जितनी चाहे उतनी रोपने की कोशिश करो परंतु नहीं लगेगी। कारण प्रकृति/कुदरत ने यह दोनों उपयोगी वृक्षों को लगाने के लिए अलग ही व्यवस्था कर रखी है।
यह दोनों वृक्षों के फल कौवे खाते हैं और उनके पेट में ही बीज बनने की प्रक्रिया होती है और तब जाकर बीज उगने लायक होते हैं। उसके पश्चात कौवे जहां-जहां बीट करते हैं, वहां वहां पर यह दोनों वृक्ष उगते हैं।
पीपल जगत का एकमात्र ऐसा वृक्ष है जो round-the-clock ऑक्सीजन छोड़ता है और बरगद के औषधि गुण अपरम्पार है। अगर यह दोनों वृक्षों को उगाना है तो बिना कौवे की सहायता से संभव नहीं है इसलिए कौवे को बचाना पड़ेगा।
यह होगा कैसे?
मादा कौआ भादो महीने में अंडा देती है और नवजात बच्चा पैदा होता है। तो इस नयी पीढ़ी के उपयोगी पक्षी को पौष्टिक और भरपूर आहार मिलना आवश्यक है इसलिए ऋषि मुनियों ने कौवों के नवजात बच्चों के लिए हर छत पर श्राघ्द के रूप मे पौष्टिक आहार की व्यवस्था कर दी जिससे कि कौवों के नवजात बच्चो का पालन पोषण हो जाये।
सनातन धर्म विज्ञान ओर प्रकृति आधारित धर्म है
पितृपक्ष
सात सौ वर्ष के इस्लामिक आक्रांताओ और दो सौ वर्ष के ईसाई शासन के बाद भी आज हम अपने त्योहार मना पाते हैं,
अपने आराध्यों की पूजा कर पाते हैं और अपने देश मे गर्व से रह पाते हैं, ये सब इसीलिए सम्भव हो पाया क्योंकि आपने तलवार के डर अथवा पैसों के मोह में अपना धर्म नहीं बदला ।
हम सदैव आपके ऋणी रहेंगे, ये पितृपक्ष आपके अदम्य शौर्य और आपके निःस्वार्थ भक्ति को समर्पित ।
आपका गौरवशाली वंशज