शिव पुराण ( श्री रुद्र संहिता )
पहला अध्याय श्री रुद्र संहिता ( पंचम खण्ड)
विषय ( शिव )
तारकपुत्रों की तपस्या एवं वरदान प्राप्ति
नारद जी बोले- हे प्रभो! आपने मुझे कुमार कार्तिकेय और श्रीगणेश के उत्तम तथा पापों को नाश करने वाले चरित्र को सुनाया। अब आप कृपा करके मुझे भगवान शिव के उस चरित्र को सुनाइए,
जिसमें उन्होंने देवताओं और इस पृथ्वीलोक के शत्रुओं, दुष्ट दानवों और राक्षसों को लोकहितार्थ मार गिराया। साथ ही महादेव जी द्वारा एक ही बाण से तीन नगरों को एक साथ भस्म करने की कथा का भी वर्णन कीजिए
ब्रह्माजी बोले- हे मुनिश्रेष्ठ नारद ! बहुत समय पूर्व, एक बार व्यास जी ने सनत्कुमार से इस विषय में पूछा था। उस समय जो कथा उन्होंने बताई थी वही आज मैं तुम्हें बताता हूं।
जब देवताओं की रक्षार्थ भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय द्वारा तारकासुर का वध कर दिया गया, तब उसके तीनों पुत्रों तारकाक्ष, विद्युन्माली और कमलाक्ष को बहुत दुख हुआ।
वे तीनों ही महान बलशाली, जितेंद्रिय, सत्यवादी, संयमी, वीर और साहसी थे परंतु अपने पिता तारकासुर का वध देवताओं द्वारा होने के कारण उनके मन में देवताओं के लिए रोष उत्पन्न हो गया।
तब उन तीनों ने अपना राज-पाट त्यागकर मेरु पर्वत की एक गुफा में जाकर उत्तम तपस्या करनी शुरू कर दी। उन्होंने अपनी कठिन और उग्र तपस्या से मुझ ब्रह्मा को प्रसन्न कर लिया।
मैं उन तीनों असुरों को वरदान देने के लिए मेरु पर्वत गया। वहां पहुंचकर मैंने तारकाक्ष, विद्युन्माली और कमलाक्ष से कहा कि हे महावीर दैत्यो! मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं। मांगो, मुझसे क्या मांगना चाहते हो।
तुम्हारी मनोकामना में अवश्य पूरी करूंगा। मुझे बताओ कि किस वरदान की प्राप्ति हेतु तुम लोगों ने इतना कठोर तप किया है?
ब्रह्माजी के ये वचन सुनकर उन तीनों तारक पुत्रों को बड़ा संतोष हुआ। तब उन्होंने मेरे चरणों में पड़कर प्रणाम किया और मेरा स्तवन करने लगे।
तत्पश्चात वे बोले- हे देवेश! हे विधाता! यदि आप वाकई हम पर प्रसन्न हैं तो हमें अवध्य होने का वरदान प्रदान कीजिए।
तत्पश्चात वे बोले- हे देवेश! हे विधाता! यदि आप वाकई हम पर प्रसन्न हैं तो हमें अवध्य होने का वरदान प्रदान कीजिए।
कोई भी प्राणी हमारा वध करने में सक्षम न हो और हम अजर-अमर हों।
हम चाहें तो किसी का भी वध कर सकें। प्रभो! हमें यही वरदान दीजिए कि हम अपने शत्रुओं को मौत के घाट उतार सकें और निभर्यतापूर्वक
इस त्रिलोक में आनंद का अनुभव करते हुए विचरें। कोई हमारा बाल भी बांका न कर सके।
तारक पुत्रों के ऐसे वचन सुनकर मैं ब्रह्मा त्रिलोकीनाथ भक्तवत्सल भगवान शिव के चरणों का स्मरण करते हुए बोला-है असुरो !
निःसंदेह ही तुम्हारी इस उत्तम तपस्या ने मुझे बहुत प्रसन्न किया है परंतु अमरत्व की प्राप्ति सभी को नहीं हो सकती है। यह प्रकृति का नियम है। जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है।
अतः इसके अतिरिक्त कोई अन्य वर मांगो। मैं तुम्हें तुम्हारी इच्छित मृत्यु का वरदान दे सकता हूं। तुम जिस प्रकार अपनी मृत्यु चाहोगे उस प्रकार तुम्हारी मृत्यु होगी।
मेरे इस प्रकार के वचन सुनकर तीनों तारक पुत्र कुछ देर के लिए सोच में डूब गए। तत्पश्चात वे बोले- भगवन्! यद्यपि हम तीनों ही महान बलशाली हैं।
फिर भी हमारे पास रहने का कोई ऐसा स्थान नहीं है, जो पूर्णतया सुरक्षित हो और जिसमें शत्रु प्रवेश न कर सकें। प्रभु! आप हम तीनों भाइयों के लिए तीन ऐसे नगरों का निर्माण करें, जो पूर्णतया सुरक्षित हों।
ये तीनों अद्भुत नगर संपूर्ण धन-संपत्ति और वैभव से शोभित हों तथा अस्त्र- शस्त्रों की सभी सामग्रियां भी वहां उपस्थित हों और उसे कोई भी नष्ट न कर सके।
तब तारकाक्ष ने अपने लिए सोने का, कमलाक्ष ने चांदी का तथा विद्युन्माली ने कठोर लोहे का बना नगर वरदान में मांगा।
साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि ये तीनों पुर दोपहर अभिजित मुहूर्त में चंद्रमा के पुष्य नक्षत्र में होने पर एक साथ मिला करेंगे।
ये तीनों ही महल आकाश में नीले बादलों में एक के ऊपर एक रहेंगे तथा जनसाधारण सहित किसी को भी नहीं दिखाई देंगे। एक सहस्र वर्षों बाद जब पुष्करावर्त नामक काले बादल बरस रहे हों,
उस समय जब तीनों महल आपस में मिले, तब हम सबके वंदनीय भगवान शिव असंभव रथ पर बैठकर एक ही बाण से हमारे नगरों सहित हमारा भी वध करें।
इस प्रकार तारकासुर के पुत्रों के मांगे वरदान को सुनकर मैं मुस्कुराया और ‘तथास्तु’ कहकर उनका इच्छित वर उन्हें प्रदान कर दिया।
फिर मय दानव को बुलाकर र ऐसे तीन लोकों को बनाने की आज्ञा देकर मैं वहां से अपने लोक को लौट आया। मय ने मेहनत से तारकाक्ष के लिए सोने का,
कमलाक्ष के लिए चांदी का और विद्युन्माली के लिए लोहे के उत्तम लोकों का निर्माण किया। ये तीनों ही लोक सभी साधनों और सुविधाओं से संपन्न थे।
इन तीनों लोकों का निर्माण होने के उपरांत वे तीनों अपने-अपने लोकों में चले गए और मय ने उन्हें एक के ऊपर एक करके, एक को आकाश में, एक को स्वर्ग के ऊपर और तीसरे को पृथ्वी लोक में स्थिर कर दिया।
तत्पश्चात तीनों असुरों की आज्ञानुसार मय भी वहीं पर निवास करने लगा। तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली तीनों ही सदैव शिव-भक्ति में लीन रहा करते थे।
इस प्रकार वे तीनों ही असुर अब आनंदपूर्वक अपने-अपने लोकों में सुखों को भोगने लगे।