IUNNATI SHIV PURAN शिव पुराण पैंतालीसवां अध्याय : शिव का सुंदर व दिव्य स्वरूप दर्शन

शिव पुराण पैंतालीसवां अध्याय : शिव का सुंदर व दिव्य स्वरूप दर्शन

शिव पुराण 

 पैंतालीसवां अध्याय – श्री रूद्र संहिता (तृतीय खंड)

 विषय:–शिव का सुंदर व दिव्य स्वरूप दर्शन

 ब्रह्माजी बोले- हे नारद! उस समय जब देवी मैना ने विष्णुजी के सामने इस प्रकार की शर्त रखी, तब मैंने तुमको भगवान शिव के पास जाने का आदेश दिया। तुमने वहां जाकर उनकी स्तुति की और उन्हें संतुष्ट किया। तब तुम्हारी बात मानकर तथा देवताओं का कार्य सिद्ध करने की इच्छा से भगवान शिव ने प्रसन्नतापर्दूक अद्भुत, उत्तम और दिव्य रूप धारण कर लिया। उस समय भगवान शिव कामदेव से अधिक रूपवान लग रहे थे। उनके सुंदर रूप-लावण्य को देखकर तुम प्रसन्न होते हुए तुरंत देवी मैना के पास उन्हें यह शुभ समाचार देने के लिए चले गए। वहां पहुंचकर, जहां हां देवी देवी मैना बैठी थीं उन्हें देखकर, तुम बोले- हे शैलराज की पत्नी और पार्वती की माता मैना! आप चलकर स्वयं भगवान शिव के सुंदर और मनोहारी रूप का दर्शन करें। यह समाचार पाकर देवी मैना की प्रसन्नता की कोई सीमा न रही। वे आपको अपने साथ लेकर भगवान शिव के दर्शन करने के लिए गईं। वहां पहुंचकर मैना ने भगवान शिव के परम आनंददायक सुंदर रूप के दर्शन किए। शिवजी का मुखारविंद करोड़ों सूयों के समान तेजस्वी, सुंदर एवं दिव्य था। उनके विशाल मस्तक पर चंद्रमा सुशोभित था। सूर्य ने उनके सिर पर छत्र धारण कर रखा था। भगवान शिव प्रसन्न मुद्रा में थे। वे ललित लावण्य से युक्त मनोहर, गौरवर्ण, चंद्रलेखा से अलंकृत होकर बिजली की भांति चमक रहे थे। विष्णु सहित सभी देवता एवं ऋषि-मुनि उनकी प्रेमपूर्वक सेवा कर रहे थे। उनके शरीर पर दिव्य अलौकिक सुंदर वस्त्र व आभूषण शोभा पा रहे थे। गंगा और यमुना चंवर झुला रही थीं और अणिमा आदि आठों सिद्धियां मुग्ध होकर नाच-गा रही थीं। इस प्रकार भगवान शंकर सुंदर व दिव्य रूप धारण करके बारात लेकर हिमालय के घर की ओर आ रहे थे। उनके साथ-साथ मैं, विष्णुजी तथा देवराज इंद्र भी विभूषित होकर चल रहे थे। उनके पीछे-पीछे सुंदर एवं अनेकों रूपों वाले गण, सिद्ध मुनि व समस्त देवता जय-जयकार करते हुए चल रहे थे। समस्त देवता इस विवाह को देखने के लिए बड़े ही उत्कंठित थे और अपने परिवार के साथ शिवजी के विवाह में सम्मिलित होने के लिए आए थे। विश्ववसु आदि गंधर्व व सुंदर अप्सराएं भगवान शिव के यश का गान करते हुए चल रहे थे। भगवान शिव के गिरिराज हिमालय के द्वार पर पधारते ही वहां महान उत्सव होने लगा। उस समय महादेव जी की शोभा अद्भुत व निराली थी। उनका सुंदर विलक्षण रूप देखकर पल भर के लिए मैना चित्रलिखित-सी होकर रह गई। फिर प्रसन्नतापूर्वक बोली- हे देवाधिदेव! महेश्वर! शिवजी ! मेरी पुत्री पार्वती धन्य है जिसने घोर तपस्या करके आपको प्रसन्न किया। मेरा सौभाग्य है कि परम कल्याणकारी भगवान सदाशिव आज मेरे घर पधारे हैं। भगवन्! में अक्षम्य अपराध कर बैठी हूं। मैंने आपकी बहुत निंदा की है। प्रभु! मैं आपसे दोनों हाथ जोड़कर क्षमा याचना करती हूं। कृपा कर मेरी भूल क्षमा करें और मुझ पर प्रसन्न हो जाएं। इस प्रकार चंद्रमौली भगवान शिव की स्तुति करती हुई शैलप्रिया मैना लज्जित होते हुए नतमस्तक हो गई।उस समय पुरवासिनी स्त्रियां सभी घर के कामों को छोड़कर, बाहर आकर भगवान शिव के दर्शन की लालसा लेकर उन्हें देखने का प्रयत्न करने लगीं। चक्की पीसने वाली ने चक्की छोड़ दी, पति की सेवा में लगी हुई पत्नी पति की सेवा छोड़कर भाग गई। कोई-कोई तो दूध पीते हुए बच्चे को छोड़कर भाग आई। इस प्रकार सभी अपने-अपने आवश्यक कार्यों को छोड़कर भगवान शिव के दर्शन के लिए दौड़ आई थीं। भगवान शिव के मनोहर रूप के दर्शन करके सब मोहित हो गईं। तब सहर्ष शिवजी की जी की सुंदर मूर्ति को अपने मन मंदिर में धारण करके वे बोलीं- सखियो ! हम सबके अहोभाग्य हैं। हिमालय नगरी में रहने वाले नर-नारियों के नेत्र आज भगवान शिव के दिव्य स्वरूप का दर्शन करके सफल हो गए हैं। आज निश्चय ही हमने संसार की हर विषय-वस्तु को पा लिया है। शिव स्वरूप का दर्शन करने मात्र से ही हमारे सारे पाप नष्ट हो गए हैं। उनकी छवि सर्वथा सब क्लेशों व दुखों का नाश करने वाली है। आज उन्हें साक्षात सामने देखकर हमारा जीवन सफल हो गया है। पार्वती ने उत्तम तपस्या द्वारा भगवान शिव को पाकर अपने साथ-साथ हम सबका भी जीवन सार्थक कर दिया है। हे पार्वती। तुम निश्चय ही धन्य हो। तुम परब्रह्म परमेश्वर भगवान शिव की अर्द्धांगिनी बनकर इस जगत को सुशोभित करोगी। यदि विधाता पार्वती-शिव का इस प्रकार मेल न कराते तो निश्चय ही उनका सारा परिश्रम निष्फल हो जाता। आज शिव-शिवा की इस युगल जोड़ी को साथ देखकर हमारे सारे कार्य सार्थक हो गए हैं। आज वाकई हम सब इनके उत्तम दर्शनों से धन्य हो गए हैं। इस प्रकार कहकर वे पुरवासिनी स्त्रियां अक्षत, कुमकुम और चंदन से शिवजी का पूजन करने लगीं तथा प्रसन्नतापूर्वक उन पर खीलों की वर्षा करने लगीं। वे स्त्रियां देवी मैना के पास खड़ी होकर उनके भाग्य और कुल की सराहना करने लगीं। उनके मुख से इस प्रकार शुभ व मंगलकारी बातें सुनकर सभी देवताओं को बहुत प्रसन्नता हुई।

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