IUNNATI SHIV PURAN शिव पुराण तेंतीसवां अध्याय : अनरण्य राजा की कथा

शिव पुराण तेंतीसवां अध्याय : अनरण्य राजा की कथा

शिव पुराण 

 तेंतीसवां अध्याय – श्री रुद्र संहिता (तृतीय खण्ड) 

 विषय :- अनरण्य राजा की कथा

ब्रह्माजी बोले- हे नारद! कुल की रक्षा करने के लिए किसी एक का त्याग कर देना ही नीति शास्त्र कहलाता है। 

जिस प्रकार राजा अनरण्य ने अपने राज-पाट, संपत्ति और अपने परिवार की रक्षा के लिए अपनी पुत्री का विवाह एक ब्राह्मण से कर दिया था। इसी प्रकार लोक कल्याण के लिए आपको भी स्वीकृति दे ही देनी चाहिए। राजा अनरण्य के बारे में सुनकर शैलराज हिमालय ने पूछा- हे महर्षि! मैं राजा अनरण्य की कथा सुनना चाहता हूं। गिरिराज हिमालय के ऐसे वचन सुनकर मुनि वशिष्ठ बोले- हे पर्वतराज! महाराजा मनु की चौदहवीं संतान इंद्रासावर्णि के वंश में ही राजा अनरण्य का जन्म हुआ था। वे भगवान शिव के परम भक्त थे। सातों द्वीपों पर उनका राज था। राजा अनरण्य ने भृगु मुनि को अपना आचार्य बनाकर सौ यज्ञ पूर्ण कराए थे।

 राजा अनरण्य की पांच रानियां, सौ सौ पुत्र व एक साक्षात लक्ष्मीस्वरूपा परम सुंदरी कन्या थी, जिसका नाम पद्मा था। पद्‌मा इकलौती पुत्री होने के कारण बहुत लाडली थी। राजा अनरण्य और उनकी पांचों रानियां पद्मा को बहुत प्यार करते थे। राजा बहुत ही सरल, न्यायप्रिय व उदार थे। देवताओं द्वारा स्वर्ग का सिंहासन दिए जाने पर उन्होंने उसे ग्रहण करने से इनकार कर दिया था। जब राजा अनरण्य की प्रिय पुत्री पद्मा विवाह के योग्य हुई तो राजा अनरण्य को उसके विवाह की चिंता सताने लगी। पद्मा के लिए योग्य वर की खोज शुरू हो गई। चारों दिशाओं में सुयोग्य वर की तलाश की जा रही थी।

 अनेकों राजाओं को पत्र लिखे गए। एक दिन संयोगवश देवी पद्मा वन में विहार के लिए अपनी सखियों के साथ गई हुई थी। वहां तपस्या करके लौट रहे ऋषि पिप्पलाद की दृष्टि प‌द्मा नाम की उस सुंदरी पर पड़ गई, वे उसकी सुंदरता पर मोहित हो गए। वे उस सुंदरी को मन में बसाए हुए ही अपनी कुटिया पर पहुंच गए। सुंदरी का सौंदर्य पिप्पलाद के मन-मस्तिष्क में धंस गया था। एक दिन ऋषि पिप्पलाद पुष्पा भद्रा नामक नदी में स्नान करने गए। संयोगवश राजा अनरण्य की परम सुंदरी पुत्री पद्मा भी वहां उपस्थित थी। उसे पुनः देखकर ऋषि पिप्पलाद के मन की इच्छा पूरी हो गई।

उन्होंने प‌द्मा की सखियों और सैनिकों से उसका परिचय प्राप्त कर लिया। वहीं कुछ मनुष्यों ने ऋषि की हंसी उड़ाते हुए कहा कि ऋषि जी आपका मन देवी पद्मा पर मुग्ध हो गया है तो आप महाराज से उन्हें मांग क्यों नहीं लेते? इस प्रकार के वचन सुनकर पिप्पलाद लज्जित तो हुए परंतु उनके दिल में सुंदरी पद्मा को पाने की इच्छा कम न होकर और बलवती हो गई। स्नान, नित्यकर्म और शिव पूजन आदि से निवृत्त होकर मुनि पिप्पलाद राजा अनरण्य की सभा में चले गए। अपने दरबार में मुनि को पधारा देखकर राजा अनरण्य ने चरण छूकर उनका अभिवादन किया तथा विधिवत पूजन करने के पश्चात उन्हें आसन पर बैठाया तथा पूछा कि मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं? इस पर ऋषि पिप्पलाद बोले, राजा आप  अपनी कन्या पद्मा को मुझे सौंप दीजिए। यह सुनकर राजा चुप हो गए। इस पर पिप्पलाद मुनि कहने लगे कि राजा यदि शीघ्र ही तुमने अपनी कन्या मुझे नहीं दी तो मैं क्षण भर में ही तुम्हें और तुम्हारे कुल को भस्म कर दूंगा। यह बात सुनकर राजा, उनकी रानियां, नौकर- चाकर, दासियां सभी रोने लगे। राजा अनरण्य यह सोच अत्यंत व्याकुल हो उठे कि कैसे वे अपनी फूलों से भी कोमल पुत्री का हाथ एक बूढ़े ऋषि को दें।

 राजा इसी चिंता में डूबे हुए थे कि वे क्या करें कि तभी वहां उनके पुरोहित और राजगुरु आ पहुंचे। राजा ने सारा वृत्तांत उन्हें सुनाया। इस पर राजगुरु बोले कि राजन, आपको अपनी कन्या का विवाह किसी से तो करना ही है, तो क्यों न उसका विवाह ऋषि पिप्पलाद से ही कर दिया जाए। इससे आपके कुल की भी रक्षा हो जाएगी। यह ब्राह्मण इस कुल का विनाश कर दे इससे तो अच्छा है कि पद्मा का विवाह इन्हीं से हो जाए। इस प्रकार अपने राजपुरोहित और राजगुरु के वचन सुनकर राजा अनरण्य ने अपने कुल की रक्षा करने के लिए अपनी कन्या को वस्त्र, आभूषणों से अलंकृत करा उसे ऋषि पिप्पलाद को अर्पित कर दिया।

 तत्पश्चात देवी प‌द्मा और ऋषि पिप्पलाद का वैदिक रीति से परिणयोत्सव संपन्न हुआ तथा राजा ने प्रसन्नतापूर्वक अपनी पुत्री को विदा कर दिया। राजा अनरण्य से विदा लेकर ऋषि पिप्पलाद अपनी पत्नी प‌द्मा को साथ लेकर अपने आश्रम पर पहुंचे। इस शोक में कि हमने अपनी पुत्री को एक वनवासी बूढ़े को सौंप दिया है, राजा अनरण्य राजपाट छोड़कर वन में चले गए। अपने पति और पुत्री की याद में रो-रोकर रानी ने अपने प्राण त्याग दिए। उनके घर-परिवार में चारों ओर दुख ही दुख था। राजा अनरण्य ने शिव कृपा से शिवलोक को प्राप्त किया। तत्पश्चात उनके पुत्र कीर्तिमान ने राज्य किया और उनके कुल का नाम चारों ओर फैला। इसलिए हे हिमालय राज! आप अपनी पुत्री को भगवान शिव को अर्पण करके अपने राज्य, कुल और धन की रक्षा करके सभी देवताओं को अपने अधीन कर लीजिए।

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