IUNNATI SHIV PURAN शिव पुराण तेंतालीसवां अध्याय- शिवजी की अनुपम लीला

शिव पुराण तेंतालीसवां अध्याय- शिवजी की अनुपम लीला

शिव पुराण 

तेंतालीसवां अध्याय – श्री रूद्र संहिता (तृतीय खंड)

विषय:–शिवजी की अनुपम लीला

ब्रह्माजी बोले- है नारद! तुमको अपने सामने देखकर देवी मैना बहुत प्रसन्न हुई और तुम्हें प्रणाम करके बोलीं- हे मुनिश्रेष्ठ नारद जी! मैं भगवान शिव के इसी समय दर्शन करना चाहती हूं। मैं देखना चाहती है, जिन शिवजी को पाने के लिए मेरी बेटी पार्वती ने घोर तपस्या की तथा अनेक कष्टों को भोगा उन शिवजी का रूप कैसा है? वे कैसे दिखते हैं? यह कहकर तुमको साथ लेकर देवी मैना चंद्रशाला की ओर चल पड़ीं। इधर भगवान शिव भी मैना के इस अभिमान को समझ गए और मुझसे व विष्णुजी से बोले कि तुम सब देवताओं को अपने साथ लेकर गिरिराज हिमालय के घर पहुंची। मैं भी अपने गणों के साथ पीछे-पीछे आ रहा भगवान विष्णु ने इसे भगवान शिव की आज्ञा माना और सब देवताओं को बुलाकर उनकी आज्ञा का पालन करते हुए शैलराज के घर की ओर प्रस्थान किया। देवी मैना तुम्हारे साथ अपने भवन के सबसे ऊंचे स्थान पर जाकर खड़ी हो गई। तब देवताओं की सजी-सजाई सेना को देखकर मैना बहुत प्रसन्न हुई। बारात में सबसे आगे सुंदर वस्त्रों एवं आभूषणों से सजे हुए गंधर्व गण अपने वाहनों पर सवार होकर बाजे बजाते और नृत्य करते हुए आ रहे थे। इनके गण अपने हाथों में ध्वज की पताका लेकर उसे फहरा रहे थे। साथ में स्वर्ग की सुंदर अप्सराएं मुग्ध होकर नृत्य कर रही थीं। उनके पीछे वसु आ रहे थे। फिर मणिग्रीवादि यक्ष, यमराज, निऋति, वरुण, वायु, कुबेर, ईशान, देवराज इंद्र, चंद्रमा, सूर्य, भृगु आदि देव व मुनीश्वर एक से एक सुंदर और मनोहारी रूप के स्वामी थे और सर्वगुण संपन्न जान पड़ते थे। उन्हें देखकर नारद वह तुमसे यही प्रश्न करती कि क्या ये ही शिव हैं? तब तुम मुस्कुराकर यह उत्तर देते कि नहीं ये भगवान शिव के सेवक हैं। देवी मैना यह सुनकर हर्ष से विभोर हो जातीं कि जब उनके सेवक इतने सुंदर और वैभवशाली हैं तो वे स्वयं कितने रूपवान और ऐश्वर्य संपन्न होंगे।

 उधर, दूसरी ओर भगवान शिव, जो कि सर्वेश्वर हैं, उनसे भला जगत की कोई बात कैसे छिप सकती है? वे देवी मैना के हृदय की बात तुरंत जान गए और मन ही मन उन्होंने उनके मन में उत्पन्न अहंकार का नाश करने का निश्चय कर लिया। तभी वहां से, जहां मैना और नारद तुम खड़े हुए थे, श्रीहरि विष्णु पधारे। उनकी कांति के सामने चंद्रमा की कांति भी फीकी पड़ जाती है। वे जलंधर के समान श्याम तथा चार भुजाधारी थे और उन्होंने पीले वस्त्र पहन रखे थे। उनके नेत्र कमल दल के समान सुंदर व प्रकाशित हो रहे थे। वे गरुड़ पर विराजमान थे। शंख, चक्र आदि उनकी शोभा में वृद्धि कर रहे थे। उनके सिर पर मुकुट जगमगा रहा था और वक्ष स्थल में श्रीवत्स का चिन्ह था। उनका सौंदर्य अप्रतिम तथा देखने वाले को मंत्रमुग्ध करने वाला था। उन्हें देखकर देवी मैना के हर्ष की कोई सीमा न रही और वे तुमसे बोलीं कि जरूर ये ही मेरी पार्वती के पति भगवान शिव होंगे। नारद जी! देवी मैना के वचनों को सुनकर आप मुस्कुराए और उनसे बोले कि देवी, ये आपकी पुत्री पार्वती के होने वाले पति भगवान शिव नहीं, बल्कि क्षीरसागर के स्वामी और जगत के पालक श्रीहरि विष्णु हैं। ये भगवान शिव के प्रिय हैं और उनके कार्यों के अधिकारी भी हैं। हे देवी! गिरिजा के पति भगवान शिव तो संपूर्ण ब्रह्माण्ड के अधिकारी हैं। वे सर्वेश्वर हैं और वही परम ब्रह्म परमात्मा हैं। वे विष्णुजी से भी बढ़कर हैं। तुम्हारी ये बातें सुनकर मैना शिवजी के बारे में बहुत कुछ सोचने लगी कि मेरी पुत्री बहुत भाग्यशाली और सौभाग्यवती है, जिसे धन-वैभव और सर्वशक्ति संपन्न वर मिला है। यह सोचकर उनका हृदय हर्ष से प्रफुल्लित हो रहा था। वे शिवजी को दामाद के रूप में पाकर अपने कुल का भाग्योदय मान रही थीं। वे कह रही थीं कि पार्वती को जन्म देकर में धन्य हो गई। मेरे पति गिरिराज हिमालय भी धन्य हो गए। मैंने अनेक तेजस्वी देवताओं के दर्शन किए, इन सभी के द्वारा पूज्य और इन सबके अधिपति मेरी पुत्री पार्वती के पति हैं फिर तो मेरा भाग्य सर्वथा सराहने योग्य है। इस प्रकार मैना अभिमान में आकर जब यह सब कह रही थी उसी समय उसका अभिमान दूर करने के लिए अपने अद्भुत रूप वाले गणों को आगे करके शिवजी भी आगे बढ़ने लगे। भगवान शिव के सभी गण मैना के अहंकार और अभिमान का नाश करने वाले थे। भूत, प्रेत, पिशाच आदि अत्यंत कुरूपगणों की सेना सामने से आ रही थी। उनमें से कई बवंडर का रूप धारण किए थे, किसी की टेढ़ी सूंड थी, किसी के होंठ लंबे थे, किसी के चेहरे पर सिर्फ दाढ़ी-मूंछें ही दिखाई देती थीं, किसी के सिर पर बाल नहीं थे तो किसी के सिर पर बालों का घना जंगल था। किसी की आंखें नहीं थीं, कोई अंधा था तो कोई काणा। किसी की तो नाक ही नहीं थी। कोई हाथों में बड़े भारी-भारी मुद्गर लिए था, तो कोई आँधा होकर चल रहा था। कोई वाहन पर उल्टा होकर बैठा हुआ था। उनमें कितने ही लंगड़े थे। किसी ने दण्ड और पाश ले रखे थे। सभी शिवगण अत्यंत कुरूप और विकराल दिखाई देते थे। कोई सींग बजा रहा था, कोई डमरू तो कोई गोमुख को बजाता हुआ आगे बढ़ रहा था। उनमें किसी का सिर नहीं था तो किसी के धड़ का पता नहीं चल रहा था तो किसी के अनेकों मुख थे। किसी के चेहरे पर अनगिनत आंखें लगी थीं तो किसी के अनेकों पैर थे। किसी के हाथ नहीं थे तो किसी के अनेकों कान थे, तो किसी के अनेकों सिर थे। सभी शिवगणों ने अचंभित करने वाली वेश-भूषा धारण की हुई थी। कोई आकार में बहुत बड़ा था तो कोई बहुत छोटा था। वे देखने में बहुत ही भयंकर लग रहे थे। उनकी लंबी-चौड़ी विशाल सेना मदमस्त होकर नाचते-गाते हुए आगे बढ़ रही थी। तभी तुमने अंगुली के इशारे से शिवगणों को दिखाते हुए देवी मैना से कहा- देवी! पहले आप भगवान शिव के गणों को देख लें, तत्पश्चात महादेव जी के दर्शन करना।

 भूत-प्रेतों की इतनी बड़ी सेना को देखकर देवी मैना भय से कांपने लगीं। इसी सेना के बीच में पांच मुख वाले, तीन नेत्रों, दस भुजाओं वाले, शरीर पर भस्म लगाए, गले में मुण्डों की माला पहनें, गले में सपों को डाले, बाघ की खाल को ओढ़े, पिनाक धनुष हाथ में उठाए, त्रिशूल कंधे पर रखकर बड़े कुरूप और बूढ़े बैल पर चढ़े हुए भगवान शंकर देवी मैना को दिखाई दिए। उनके सिर पर जटाजूट थी और आंखें भयंकर लाल थीं।

 नारद! तभी तुमने मैना को बताया कि वे ही भगवान शिव हैं। तुम्हारी यह बात सुनकर देवी मैना अत्यंत व्याकुल होकर तेज वायु के झकोरे लगने से टूटी लता के समान धरती पर धड़ाम से गिरकर मूर्छित हो गई। उनके मुख से सिर्फ यही शब्द निकले कि सबने मिलकर मुझे छल-कपट से राजी किया है। मैं सबके आग्रह को मानकर बरबाद हो गई। मैना के इस प्रकार बेहोश हो जाने पर उनकी अनेकों दासियां वहां भागती हुई आ गई। अनेकों प्रकार के उपाय करने के पश्चात धीरे-धीरे मैना होश में आईं।

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