शिव पुराण
चालीसवां अध्याय – श्री रुद्र संहिता (तृतीय खंड)
विषय:–भगवान शिव की बारात का हिमालयपुरी की ओर प्रस्थान
ब्रह्माजी बोले- हे मुनिश्रेष्ठ नारद! भगवान शिव ने कुछ गणों को वहीं रुकने का आदेश देते हुए नंदीश्वर सहित सभी गणों को हिमालयपुरी चलने की आज्ञा दी। उसी समय गणों के स्वामी शंखकर्ण करोड़ों गण साथ लेकर चल दिए। फिर भगवान शिव की आज्ञा पाकर गणेश्वर, शंखकर्ण, केकराक्ष, विकृत, विशाख, पारिजात, विकृतानन, दुंदुभ, कपाल, संदारक, कंदुक, कुण्डक, विष्टंभ, पिप्पल, सनादक, आवेशन, कुण्ड, पर्वतक, चंद्रतापन, काल, कालक, महाकाल, अग्निक, अग्निमुख, आदित्यमूर्द्धा, घनावह, संनाह, कुमुद, अमोघ, कोकिल, सुमंत्र, काकपादोदर, संतानक, मधुपिंग, कोकिल, पूर्णभद्र, नील, चतुर्वक्त्र, करण, अहिरोमक, यज्ज्वाक्ष, शतमन्यु, मेघमन्यु, काष्ठागूढ, विरूपाक्ष, सुकेश, वृषभ, सनातन, तालकेतु, षण्मुख, चैत्र, स्वयंप्रभु, लकुलीश, लोकांतक, दीप्तात्मा, दैन्यांतक, भृगिरिटि, देवदेवप्रिय, अशनि, भानुक, प्रमथ तथा वीरभद्र अपने असंख्य गणों को साथ लेकर चल पड़े।
नंदीश्वर एवं गणराज भी अपने-अपने गणों को ले क्षेत्रपाल और भैरव के साथ उत्साहपूर्वक चल दिए। उन सभी गणों के सिर पर जटा, मस्तक पर चंद्रमा और गले में नील चिह्न था। शिवजी ने रुद्राक्ष के आभूषण धारण किए हुए थे। शरीर पर भस्म शोभायमान थी। सभी गणों ने हार, कुंडल, केयूर तथा मुकुट पहने हुए थे। इस प्रकार त्रिलोकीनाथ महादेव अपने लाखों-करोड़ों शिवगणों तथा मुझे, श्रीहरि और अन्य सभी देवताओं को साथ लेकर धूमधाम से हिमालय नगरी की ओर चल दिए। शिवजी के आभूषणों के रूप में अनेक सर्प उनकी शोभा बढ़ा रहे थे और वे अपने नंदी बैल पर सवार होकर पार्वती जी को ब्याहने के लिए चल दिए।
इस समय चंडी देवी महादेव जी की बहन बनकर खूब नृत्य करती हुई उस बारात के साथ हो चलीं। चंडी देवी ने सांपों को आभूषणों की तरह पहना हुआ था और वे वे प्रेत पर बैठी हुई थीं तथा उनके मस्तक पर सोने से भरा कलश था, जो कि दिव्य प्रभापुंज-सा प्रकाशित हो रहा था। उनकी यह मुद्रा देखकर शत्रु डर के मारे कांप रहे थे। करोड़ों भूत-प्रेत उस बारात की शोभा बढ़ा रहे थे। चारों दिशाओं में डमरुओं, भेरियों और शंखों के स्वर गूंज रहे थे। उनकी ध्वनि मंगलकारी थी जो विघ्नों को दूर करने वाली थी। श्रीहरि विष्णु सभी देवताओं और शिवगणों के बीच में अपने वाहन गरुड़ पर बैठकर चल रहे थे। उनके सिर के ऊपर सोने का छत्र था। चमर ढुलाए जा रहे थे। मैं भी वेदों, शास्त्रों, पुराणों, आगमों, सनकादि महासिद्धों, प्रजापतियों, पुत्रों तथा अन्यान्य परिजनों के साथ शोभायमान होकर चल रहा था। स्वर्ग के राजा इंद्र भी ऐरावत हाथी पर आभूषणों से सज- धजकर बारात की शोभा में चार चांद लगा रहे थे। भक्तवत्सल भगवान शिव की बारात में अनेक ऋषि-मुनि और साधु-संत भी अपने दिव्य तेज से प्रकाशित होकर चल रहे थे। देवाधिदेव महादेव जी का शुभ विवाह देखने के लिए शाकिनी, यातुधान, बैताल, ब्रह्मराक्षस, भूत, प्रेत, पिशाच, प्रमथ आदि गण, तुम्बुरु, नारद, हा हा और हू हू आदि श्रेष्ठ गंधर्व तथा किन्नर भी प्रसन्न मन से नाचते-गाते उनके साथ हो लिए। इस विवाह में शामिल होने में स्त्रियां भी पीछे न थीं। सभी जगत्माताएं, देवकन्याएं, गायत्री, सावित्री, लक्ष्मी और सभी देवांगनाएं और देवपत्नियां तथा देवमाताएं भी खुशी-खुशी शंकर जी के विवाह में सम्मिलित होने के लिए बारात के साथ हो लीं। वेद, शास्त्र, सिद्ध और महर्षि जिसे धर्म का स्वरूप मानते हैं, जो स्फटिक के समान श्वेत व उज्ज्वल है, वह सुंदर बैल नंदी भगवान शिव का वाहन है। शिवजी नंदी पर आरूढ़ होकर उसकी शोभा बढ़ाते हैं।
भगवान शिव की यह छवि बड़ी मनोहारी थी। वे सज-धजकर समस्त देवताओं, ऋषि-मुनियों, शिवगणों, भूत-प्रेतों, माताओं के सान्निध्य में अपनी विशाल बारात के साथ अपनी प्राणवल्लभा देवी पार्वती का पाणिग्रहण करने के लिए सानंद होकर अपने ससुर गिरिराज हिमालय की नगरी की ओर पग बढ़ा रहे थे। वे सब मदमस्त होकर नाचते-गाते हुए हिमालय के भवन की तरफ बढ़े जा रहे थे। हिमालय की तरफ बढ़ते समय उनके ऊपर आकाश से पुष्पों की वर्षा हो रही थी। बारात का वह दृश्य बहुत ही मनोहारी लग रहा था। चारों दिशाओं में शहनाइयां बज रही थीं और मंगल गान गूंज रहे थे। उस बारात का अनुपम दृश्य सभी पापों का नाश करने वाला तथा सच्चीआत्मिक शांति प्रदान करने वाला था।