IUNNATI SHIV PURAN शिव पुराण : आठवां अध्याय – श्री रुद्र संहिता (पंचम खण्ड)

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शिव पुराण

आठवां अध्याय - श्री रुद्र संहिता (पंचम खण्ड) ( शिव )

विषय - दिव्य रथ का निर्माण

व्यास जी ने सनत्कुमार जी से पूछा- हे स्ननत्कुमार जी! आप अत्यंत बुद्धिमान और सर्वज्ञ हैं। आपने मुझे अ‌द्भुत शिव कथा सुनाने की कृपा की है।
 
मुनि! जब भगवान शिव ने देवताओं के अभीष्ट कार्यों को पूरा करने के लिए त्रिपुर स्वामियों का वध करने हेतु विष्णुजी से दिव्य रथ का निर्माण करने के लिए कहा तब विष्णुजी ने क्या किया?
 
दिव्य रथ का निर्माण किसने और कैसे किया?

सूत जी बोले-

हे मुने! व्यास जी की यह बात सुनकर सनत्कुमार जी ने भगवान शिव के चरणों का ध्यान करके कहा-भगवान शिव के लिए दिव्य रथ के निर्माण करने के लिए देवताओं ने अपने शिल्पी विश्वकर्मा को बुलाकर उन्हें कार्य सौंपा।
 
तब भगवान शिव के अनुरूप ही विश्वकर्मा ने उनके लिए रथ का निर्माण किया। उस रथ के समान कोई दूसरा रथ नहीं था। वह दिव्य रथ सोने का बना हुआ था।
 
उस रथ के दाएं पहिए में सूर्य और बाएं पहिए में चंद्रमा लगे हुए थे। सूर्य के पहिए में बारह अरें लगे हुए थे जो कि बारह महीनों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। चंद्रमा के पहिए में लगे सोलह अरें चंद्रमा की सोलह कलाओं का प्रदर्शन कर रहे थे।
 
ब्रह्मांड में विद्यमान अश्विनी आदि सत्ताईस नक्षत्र उस रथ के पीछे के भाग की शोभा बढ़ा रहे थे। छहों ऋतु सूर्य और चंद्रमा के बने पहियों की धुरी बनीं।
 

अंतरिक्ष रथ के आगे का भाग और मंदराचल पर्वत उस रथ में बैठने का स्थान बना तथा संवत्सर रथ का वेग बनकर उसे गति प्रदान करने लगा।

 इंद्रियां उस दिव्य रथ को चारों ओर से सुसज्जित किए थीं तथा श्रद्धा रथ की चाल बनी।
 
वेदों के अंग रथ के भूषण तथा पुराण, न्याय, मीमांसा तथा धर्मशास्त्र आदि रथ की शोभा बढ़ाने लगे। महान तीर्थ पुष्कर दिव्य रथ की ध्वज पताका बनकर फहराने लगा।
 
विशाल समुद्रों ने रथ के बाहरी भाग का निर्माण किया। गंगा-यमुना आदि पवित्र नदियां स्त्री रूप धारण कर रथ में चंवर डुलाने लगीं।
 
स्वयं ब्रह्माजी उस दिव्य रथ में सारथी बनकर भगवान शिव की सेवा में उपस्थित हुए तथा ॐकार उनके रथ का चाबुक बना।
 
अकार विशाल छत्र बनकर रथ को शोभित करने लगे।
 
भगवान शिव के धनुष का निर्माण करने हेतु शैलराज हिमालय स्वयं धनुष बने तो नागराज उस धनुष के लिए प्रत्यंचा बने। देवी सरस्वती धनुष की घंटा और भगवान श्रीहरि बाण बने और अग्निदेव ने बाण की नोक में अपनी शक्ति डाली।
 
ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद उस दिव्य रथ में घोड़े बनकर जुत गए। वायुदेव बाजा बजाने लगे।
 
उस दिव्य रथ में इस ब्रह्मांड की हर वस्तु उपयोगिता बढ़ा रही थी। इस प्रकार देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा ने उस उत्तम दिव्य रथ का निर्माण किया।
 

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