शिव पुराण
दूसरा अध्याय - श्री रूद्र संहिता (पंचम खंड) शिव
विषय:--देवताओं की प्रार्थना
नारद जी बोले- हे पिताश्री! जब तारकासुर के तीनों पुत्र तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली आनंदपूर्वक अपने-अपने लोकों में निवास करने लगे, तब फिर आगे क्या हुआ?
ब्रह्माजी बोले- हे नारद! तारकपुत्रों के तीनों लोकों के अद्भुत तेज से दग्ध होकर सभी देवतागण देवराज इंद्र के साथ दुखी अवस्था में ब्रह्मलोक में मेरी शरण में आए।
वहां मुझे नमस्कार करने के पश्चात देवताओं ने अपना दुख बताना शुरू किया। वे बोले – हे विधाता !
त्रिपुरों के स्वामी, तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली नामक तीनों तारकपुत्रों ने हम सभी देवताओं को संतप्त कर दिया है।
भगवन्! अपनी रक्षा के लिए हम सभी आपकी शरण में आए हैं। प्रभु आप हमें उनके वध का कोई उपाय बताइए, ताकि हम अपने दुखों को दूर करके
पुनः पहले की भांति अपने लोक में सुख से रह सकें।
पुनः पहले की भांति अपने लोक में सुख से रह सकें।
यह सुनकर मैंने उनसे कहा- हे देवताओ! तुम्हें इस प्रकार उन तारकपुत्रों से डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। तुम्हारी इच्छा के अनुसार मैं तुम्हें उनके वध का उपाय बताता हूं।
उन तीनों ही असुरों को मैंने वरदान प्रदान किया है।
अतः मैं उनका वध नहीं कर सकता। इसलिए तुम सब भगवान शिव की शरण में जाओ वे ही तुम्हारी इस दुख की घड़ी में सहायता करेंगे। तुम उनके पास जाकर उन्हें प्रसन्न करो।
मुझ ब्रह्मा के ये वचन सुनकर सभी देवता अपने स्वामी देवराज इंद्र के नेतृत्व में भगवान शिव के पास कैलाश पर्वत पर पहुंचे। वहां सबने भक्तिभाव से भगवान शिव को प्रणाम किया और उनकी स्तुति करने लगे।
तत्पश्चात देवता बोले- हे महादेव जी! तारकासुर के तीनों पुत्रों ने हमें परास्त कर दिया है।
यही नहीं उन्होंने सभी ऋषि-मुनियों को भी बंदी बना लिया है। वे उन्हें यज्ञ नहीं करने देते हैं।
चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है।उन्होंने इस त्रिलोक को अपने वश में कर लिया है और पूरे संसार को नष्ट करने में लगे हुए हैं। ब्रह्माजी द्वारा इन तीनों को अवध्य होने का वरदान मिला है।
इसी कारण वे तीनों बलशाली दानव मदांध हो चुके हैं और मनुष्यों और देवताओं को तरह-तरह से प्रताड़ित कर रहे हैं। हे भक्तवत्सल! हे करुणानिधान!
हम सब देवता परेशान होकर आपकी शरण में इस आशा के साथ आए हैं कि
आप हम सबकी उन तीनों असुरों से रक्षा करेंगे तथा इस पृथ्वी और स्वर्ग को उनके आतंकों से मुक्ति दिलाऐंगे। भगवन्! इससे पहले कि वे इस जगत का ही विनाश कर दें आप उनसे हम सबकी रक्षा करें।