IUNNATI SHIV PURAN शिव पुराण बावनवां अध्याय : भगवान शिव का आवासगृह में शयन

शिव पुराण बावनवां अध्याय : भगवान शिव का आवासगृह में शयन

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शिव पुराण 

 बावनवां अध्याय – श्री रूद्र संहिता (तृतीय खंड)

विषय : भगवान शिव का आवासगृह में शयन

 ब्रह्माजी बोले- नारद! शैलराज हिमालय ने सभी बारातियों के भोजन की व्यवस्था करने हेतु सर्वप्रथम अपने घर के आंगन को साफ कराकर सुंदर ढंग से सजाया। तत्पश्चात गिरिराज हिमालय ने अपने पुत्रों मैनाक आदि को जनवासे में भेजकर भोजन करने हेतु सभी देवी- देवताओं, साधु-संतों, ऋषि-मुनियों, शिवगणों, देवगणों सहित विष्णु और भक्तवत्सल भगवान शिव को भोजन के लिए आमंत्रित किया। तब सभी देवताओं को साथ लेकर सदाशिव भोजन करने के लिए पधारे। 

हिमालय ने पधारे हुए सभी देवताओं एवं भगवान शिव का बहुत आदर-सत्कार किया और उन्हें उत्तम आसनों पर बैठाया। अनेकों प्रकार के भोजन परोसे गए तथा गिरिराज ने सबसे भोजन ग्रहण करने की प्रार्थना की। सभी बारातियों ने तृप्ति के साथ भोजन किया तथा आचमन करके सब देवता विश्राम के लिए अपने-अपने विश्रामस्थल पर चले गए।

 तब हिमालय प्रिया देवी की आज्ञा लेकर, नगर की स्त्रियों ने भगवान शिव को सुंदर सुसज्जित वासभवन में रत्नजड़ित सिंहासन पर सादर बैठाया। वहां उस भवन में सैकड़ों रत्नों के दीपक जल रहे थे। उनकी अद्भुत जगमगाहट से पूरा भवन आलोकित हो रहा था। उस वास भवन को अनेकों प्रकार की सामग्रियों से सजाया और संवारा गया था। 

मोती, मणियों एवं श्वेत चंवरों से पूरे भवन को सजाया गया था। मुक्ता मणियों की सुंदर बंदनवारें द्वार की शोभा बढ़ा रही थीं। उस समय वह वासभवन अत्यंत दिव्य, मनोहर और मन को उमंग-तरंग से आलोकित करने वाला लग रहा था। फर्श पर सुंदर बेल-बूटे बने थे। भवन को सुगंधित करने हेतु सुवासित द्रव्यों का प्रयोग किया गया था। जिसमें चंदन और अगर का प्रयोग प्रमुख रूप से था। 

उस वासभवन में देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा द्वारा बनाए गए कृत्रिम बैकुण्ठलोक, ब्रह्मलोक, इंद्रलोक तथा शिवलोक सभी के दर्शन एक साथ हो रहे थे, इन्हें देखकर भगवान शिव को बहुत प्रसन्नता हुई। वासभवन में बीचोंबीच एक सुंदर रत्नों से जड़ा अद्भुत पलंग था। उस पर महादेव जी ने सोकर रात बिताई। दूसरी ओर हिमालय ने अपने बंधु-बांधवों को भोजन कराने के उपरांत बचे हुए सारे कार्य पूर्ण किए।

 प्रातःकाल चारों ओर पुनः शिव-विवाह का अनोखा उत्सव होने लगा। अनेकों प्रकार के सुरीले वाद्य यंत्र बजने लगे। मंगल-ध्वनि होने लगी। सभी देवता अपने-अपने वाहनों को तैयार करने लगे। सभी की तैयारियां पूर्ण हो जाने के पश्चात भगवान श्रीहरि विष्णु ने धर्म को भगवान शिव के पास भेजा। तब धर्म सहर्ष भगवान शिव के पास वासभवन में गए।

 उस समय करुणानिधान भगवान शिव सोए हुए थे। यह देखकर योगशक्ति संपन्न धर्म ने भगवान शिव को प्रणाम करके उनकी स्तुति की और बोले- हे महेश्वर! हे महादेव! मैं भगवान श्रीहरि विष्णु की आज्ञा से यहां आया हूं। हे भगवन्! उठिए और जनवासे में पधारिए। वहां सभी देवता और ऋषि-मुनि आपकी ही प्रतीक्षा कर रहे हैं। प्रभु वहां पधारकर हम सबको कृतार्थ करिए।

 धर्म के वचन सुनकर सदाशिव बोले- हे धर्मदेव! आप जनवासे में वापस जाइए। मैं अतिशीघ्र जनवासे में आ रहा हूं। भगवान शिव के ये वचन सुनकर धर्म ने भगवान शिव को प्रणाम किया और उनकी आज्ञा लेकर पुनः जनवासे की ओर चले गए।

 उनके जाने के पश्चात भगवान शिव तैयार होकर जैसे ही चलने लगे, हिमालय नगरी की स्त्रियां उनके चरणों के दर्शन हेतु आ गईं और मंगलगान करने लगीं। तब महादेव जी ने गिरिराज हिमालय और मैना से आज्ञा ली और जनवासे की ओर चल दिए। वहां पहुंचकर महादेव जी ने मुझे और विष्णुजी सहित सभी ऋषि-मुनियों को प्रणाम किया। तब सब देवताओं सहित मैंने और विष्णुजी ने शिवजी की वंदना और स्तुति की।

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