माँ कूष्मांडा मंत्र,पूजाविधि, आरती व भोग
नवरात्रि के चौथे दिन को माँ कुष्मांडा की पूजा की जाती है। माँ कुष्मांडा को नवदुर्गा का चौथा स्वरूप माना जाता है। उनका नाम “कुष्मांडा” एक संधि शब्द है, जिसमें “कुष्म” धारण करने वाले और “आंधी” शब्द शांति की अर्थ होता है।
माँ कुष्मांडा की पूजा से उनके भक्तों को मानसिक और शारीरिक शक्ति प्राप्त होती है। इस दिन मां को दूध, फल, मिष्ठान, और भोग अर्पित किया जाता है और उनकी कृपा का आशीर्वाद लिया जाता है।
चौथे दिन को ध्यान और पूजा के द्वारा भक्त अपने जीवन में समृद्धि, सुख, और सम्मान की प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
नवरात्रि में मां कूष्माण्डा की साधना-आराधना करने से माता रानी अपने भक्तों को सभी रोगों से मुक्ति और अच्छी सेहत का आशीर्वाद प्रदान करती हैं।
देवी कूष्मांडा रिद्धि-सिद्धि को देने वाली मां है। मां दुर्गा का ये स्वरूप अपने भक्त को आर्थिक ऊंचाईयों पर ले जाने में निरन्तर सहयोग करने वाला है।
मां कूष्मांडा के आशीर्वाद से आर्थिक स्थितियां मजबूत होती हैं। साथ ही घर की दरिद्रता दूर होती है। देवी कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं इसलिए यह अष्टभुजा देवी भी कहलाती हैं।
माँ कूष्मांडा का प्रिय फूल, रंग व भोग
वैसे तो मातारानी भक्त के द्वारा खुश होकर अर्पित किया गया प्रत्येक भोग को अपनाती है लेकिन माता रानी को लाल रंग ,गुड़हल व गुलाब अर्पित करें।
माँ कूष्मांडा को मालपुआ बहुत पसंद है आप माता रानी को नवरात्र के चौथे दिन मालपुए का भोग लगा सकते है।
माता रानी इससे काफ़ी प्रशन्न होती है व भक्तों की सभी मुराद पूरी करती है।
माँ कूष्मांडा का भव्य मंदिर उत्तरप्रदेश के कानपुर ज़िले में स्थित है।
माँ कूष्मांडा मंदिर कानपुर का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है और नवरात्रि के उत्सव के समय यहां भक्तों का आगमन बहुतायत से होता है।
यहां पर विशाल संख्या में भक्त आते हैं और माँ को अर्चना, पूजा और आराधना करते हैं।
माता रानी का मंत्र व आरती
1- बीज मंत्र : ऐं ही दैव्ये नमः 2- ऐं हिम् कलीं चामुण्डायै विच्छै
आरती
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु मे।
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
कूष्मांडा जय जग सुखदानी।
मुझ पर दया करो महारानी॥
पिगंला ज्वालामुखी निराली।
शाकंबरी माँ भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे ।
भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदंबे।
सुख पहुँचती हो माँ अंबे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा।
पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
माँ के मन में ममता भारी।
क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा।
दूर करो माँ संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥
जय मातारानी
Navratri 4th Day Dedicated to Maa Kushmanda
Maa Kushmanda is worshipped on the fourth day of Navratri. Maa Kushmanda is considered to be the fourth form of Navdurga.
Her name “Kushmanda” is a compound word, in which “Kushm” means the one who wears and the word “Aandhi” means peace.
By worshipping Mother Kushmanda, her devotees get mental and physical strength. On this day, milk, fruits, sweets, and bhog are offered to the mother and blessings of her grace are taken.
On the fourth day, through meditation and worship, devotees get the blessings of prosperity, happiness, and respect in their lives.
By worshipping Mother Kushmanda during Navratri, Mata Rani blesses her devotees with freedom from all diseases and good health.
Goddess Kushmanda is the mother who gives Riddhi-Siddhi. This form of Mother Durga is going to constantly help her devotee in taking him to economic heights.
With the blessings of Mother Kushmanda, the financial conditions are strengthened. Also, poverty of the house is removed. Goddess Kushmanda has eight arms,
hence she is also called Ashtabhuja Devi.
Favorite flower, color and offering of Maa Kushmanda
Although Mata Rani accepts every offering offered by the devotee happily, but offer red color, hibiscus and rose to Mata Rani.
Maa Kushmanda likes Malpua very much, you can offer Malpua to Mata Rani on the fourth day of Navratri. Mata Rani is very happy with this and fulfills all the wishes of the devotees.
Mantra and Aarti of Mata Rani
1- बीज मंत्र: ऐं ही दैव्ये नमः 2- ऐं हिम् कलीं चामुण्डायै विच्छै
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु मे।
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
कूष्मांडा जय जग सुखदानी।
मुझ पर दया करो महारानी॥
पिगंला ज्वालामुखी निराली।
शाकंबरी माँ भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे ।
भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदंबे।
सुख पहुँचती हो माँ अंबे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा।
पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
माँ के मन में ममता भारी।
क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा।
दूर करो माँ संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥
जय मातारानी