IUNNATI JYOTIRLINGA नागेश्वर ज्योतिर्लिंग इतिहास,पौराणिक कथा

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग इतिहास,पौराणिक कथा

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नागेश्वर ज्योतिर्लिंग इतिहास,पौराणिक कथा और आने जाने का सफ़र

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग ( Nageshwar Jyotrilinga)

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के प्रसिद्ध श्रृंगार रूप के रूप में जाना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग गुजरात राज्य के द्वारका नगर के पास स्थित है। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग को “दारुकावनेश्वर” भी कहा जाता है।

 

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास पुराने पुराणों में विस्तार से वर्णित है। इस ज्योतिर्लिंग को भगवान शिव ने भक्त परीक्षित को अपनी भक्ति की परीक्षा के लिए प्रकट किया था। दारुकावन के एक वन में, शिव ने अपनी भक्ति के परीक्षित को नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के स्थापना के साथ उसके पास आए थे।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग को भगवान शिव की ज्योति स्वरूप रूप में माना जाता है और यहां दर्शनार्थी और श्रद्धालुओं की भीड़ आती है। इस स्थान पर एक प्रमुख महाकाली मंदिर भी है, जो माँ काली की पूजा के लिए प्रसिद्ध है।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा

यह कथा भगवान शिव के भक्त परीक्षित के समय के संदर्भ में है।

कथा के अनुसार, राजा परीक्षित ने अपने राज्य के वनों में एक विशाल वन की यात्रा की। वह एक समुद्र तट पर पहुंचा और अत्यंत प्यासा हो गया। उसने अपने यात्रिकों को जल पान के लिए खोजने के लिए भेजा, लेकिन वे कोई स्थान नहीं पा सके। तब राजा परीक्षित ने भगवान शिव का ध्यान किया और उन्हें प्रार्थना की।

भगवान शिव ने राजा परीक्षित की प्रार्थना सुनी और उन्हें शिवलिंग के पास जाने की सलाह दी। राजा परीक्षित ने शिवलिंग की पूजा की और उन्हें जल प्रदान की गई।

उस समय, एक नागराज उस जगह पर अपने अभिषेक के लिए आया, लेकिन राजा परीक्षित ने उसे पानी नहीं दिया। नागराज नाराज हो गया और उसने राजा को काट दिया। यहां भगवान शिव ने नागराज को शांति दिया और राजा परीक्षित को बचा लिया। इसके बाद, शिवलिंग को “नागेश्वर” नाम दिया गया, जिसका अर्थ है “नागों का ईश्वर”।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर की वास्तुकला

नागेश्वर का मंदिर वास्तुकला में उत्तम संरचना और सुंदर भवन के रूप में जाना जाता है। इसकी मुख्य भवन की वास्तुकला में शैली, गोपुर, गोपुराम, और अन्य संरचनाएं बहुत ही भव्य और समृद्ध होती हैं।

मंदिर के भीतर भी उत्तम वास्तुकला का उपयोग किया जाता है। मंदिर की भीतरी स्तम्भ, मंच, गर्भगृह, और प्रांगण में वास्तुकला के अनुसार शिल्पकला के भव्य अलंकरण और चित्रण की भीड़ होती है।

ज्योतिर्लिंग का मंदिर समृद्ध वास्तुकला की एक उत्कृष्ट उदाहरण है और यह प्रमुख धार्मिक स्थलों में एक प्रमुख पर्यटन स्थल भी है। इसकी वास्तुकला आकर्षकता, शांति और आध्यात्मिकता का अनुभव कराती है।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के पहुँचने के मार्ग
1.हवाई मार्ग

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के निकटतम हवाई अड्डे द्वारका है, जिससे आप द्वारका आ सकते हैं और वहां से नागेश्वर  की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।

2.रेलवे मार्ग

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के निकटतम रेलवे स्टेशन द्वारका रेलवे स्टेशन है। ड्वारका से आप टैक्सी, बस, या अन्य सार्वजनिक यातायात का इस्तेमाल करके नागेश्वर ज्योतिर्लिंग तक पहुंच सकते हैं।

3.अग्रसर मार्ग

यदि आपके पास अपने वाहन का उपयोग करने का विकल्प है, तो आप द्वारका से नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के लिए रोड यात्रा कर सकते हैं।द्वारका से नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की दूरी लगभग 17 किलोमीटर है और रोड से यहां पहुंचने में लगभग 1 घंटे का समय लगता है।

4.बस मार्ग

द्वारका से आप नागेश्वर  के लिए बस सेवा का उपयोग कर सकते हैं। ड्वारका बस स्टेशन से नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के लिए नियमित बसें उपलब्ध होती हैं।

इन मार्गों में से किसी भी मार्ग का चयन करते समय, आपके पास अपनी सुविधाओं, बजट, और समय को ध्यान में रखना चाहिए।

The legend of Daruka

A story about the Nageshvara Jyotirlinga in the Shiva Purana describes how a demon by the name of Daruk assaulted a follower of Shiva named Supriya and imprisoned him and many others in his city of Darukavana, an underwater city populated by demons and sea snakes. The convicts began chanting the Shiva mantra in response to Supriya’s desperate pleas.

 The monster was destroyed right away by Shiva’s appearance, and he afterwards took up residence there as a Jyotirlinga. Daruka, the demon’s spouse, was a worshipper of Mata Parvati. She was able to master the forest because of her penance and dedication to Mata Parvati. There, she performed her devotions and gave the forest the name “Darukavana” in her honour. Anywhere that Daruka

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